दरगाह की राजनीति

 


 



दरगाह की राजनीति
दरअसल मुम्बई की हाजी अली दरगाह एक अज़रबैजानी मोमिन की कब्र है !... कितनी पुरानी है... कहने वाले 500 साल पुरानी मानते हैं... मगर गौर से इसका निर्माण देखें तो 100 साल से ज़्यादा पुराना नहीं दिखता ! यही नहीं... इसके बाद का भी नया निर्माण है !... हाजी अली दरगाह सरकारी जमीन पर है !... यही नहीं ... बाद में भी 4166 मीटर बेहद बेशकीमती ज़मीन हाजी अली दरगाह को लीज पर और दी गई ! 
             2009 में उस सरकारी जमीन पर दरगाह वालों ने मोबाइल कंपनियों के अनेक ट्रांसमिशन टावर लगवा लिए... जिसका किराया... दरगाह को प्रतिवर्ष करोड़ों रु मिलता है... पिछले साल BMC ने दरगाह की मोबाइल टावरों से कुल आय में से सिर्फ 1.80 करोड़ रु मांगे... क्योकि लीज पर दी गई 4166 वर्गमीटर सरकारी जमीन है... दरगाह ने चवन्नी भी देने से इनकार कर दिया... विश्वास मानिए... देश की अधिकांश मस्जिदें, दरगाहें सरकारी जमीन पर बनी हुई हैं... सरकार को किसी भी रूप में गृहकर,किराया या लीज रेंट के रूप में धेले की आमदनी नहीं है... 
         नई बात यह हुई कि उद्धव सरकार के आते ही रु 35 करोड़ हाजी अली ट्रस्ट को सुंदरीकरण हेतु और आबंटित कर दिए ! अर्थात अपना पैसा मिला नहीं, 35 करोड़ रु दरगाह को और दे दिए गए!... मगर देश के लिए इनका योगदान जीरो है... दरगाह के पास अकूत संपत्ति है,कभी आपने सुना है कि मुम्बई में आई बाढ़ या किसी प्राकृतिक आपदा के समय किसी दरगाह ने एक धेला भी दिया हो !
              पिछले वर्ष अजमेर दरगाह की आय 230 करोड़ थी (असल मे कितनी होगी,अल्लाह जानें) ... देश के मंदिरों ने 500 करोड़ रु से ज़्यादा कोरोना आपदा से निपटने के लिए दिए हैं... मगर अजमेर, हज़रत निज़ामुद्दीन, अजमेर दरगाह या किसी चर्च ने एक फूटी कौड़ी तक नहीं दिखाई है,जबकि 50 % कोरोना शिकार इसी वर्ग के हैं.... 
           कुछेक मंदिरों की आय से लोगों की आंखें चौधियाई रहती हैं.... जबकि पूरी आय सरकारें ही ले लेती है !... मस्जिदों, दरगाहों और चर्चों की आय शायद मंदिरों से हज़ार गुनी ज़्यादा होगी... मगर उनसे कोई एक छिदम्मी नहीं मांगता !


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