भजन- मनवा सोच समझ पग धरिये
भजन।तर्ज तेरे नैना क्यों भर आये।
मनवा सोच समझ पग धरिये,
मनवा सोच समझ पग धरिये।
इस मानव के चोले को,तू यूँ बर्बाद ना करिये।।
करले श्रेष्ठ कर्म तू संचित,
इनसे रह ना जाये वंचित।
कल परसों पर,ना छोड़ो लंबित,वर्तमान कर तरिये।
कोन है अपना कोन पराया।
यह पहिचान नही कर पाया।
लुट जाने पर गर पछताया,फिर उसका दंड भरिये।
धर्म,कर्म से प्रीति लगा ले,
मनुष्य जन्म को सफल बनाले।
सत्संग का मार्ग अपनाले,फिर काहे को डरिये।।
उसको अपना मीत बनालें,
जो हरदम तेरे संग मे चाले।
वही है जगती के रखवाले,रामनिवास सुमरिये।
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