औषधीय यज्ञ सामग्री से चिकित्सा
औषधीय यज्ञ सामग्री से चिकित्सा🌹
यज्ञ हमारी सनातन वैदिक संस्कृति का आधार है। ब्राह्मण ग्रंथो में इसे संसार का श्रेष्ठतम कर्म कहा गया है।
यज्ञ शब्द का बहुत विस्तृत और गहरा अर्थ है।
🌹यज्ञ शब्द का अर्थ🌹
मुख्य रूप से यज्ञ शब्द के तीन प्रमुख अर्थ हैं
देवपूजा
संगतिकरण
दान
देवपूजा अर्थात जो भी जड़ और चेतन देव हैं उनका सत्कार करना व सदुपयोग करना।
संगतिकरण अर्थात समाज के चारों वर्णों और विद्वानों को एक दूसरे के संगत करना समाज मे समभाव और एकता की स्थापना करना।
दान अर्थात विद्वानों सन्यासियों को यथायोग्य दान देना अपनी आय का दशांश धर्म और देश के रक्षा में लगाना।
यह यज्ञ शब्द के प्रमुख अर्थ हैं।
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🌹पंच महायज्ञ🌹
महाराज मनु ने मनु स्मृति में प्रत्येक व्यक्ति के लिये पांच महायज्ञ नित्य करने का विधान किया है।
🌹ब्रह्म यज्ञ🌹
परमेश्वर जो कि देवो का भी देव है उसकी उपासना ध्यान करना वेद आदि शास्त्रों को पढ़ना पढ़ाना और आचरण करना।
🌹देव यज्ञ🌹
पवित्र अग्नि में पुष्टिकारक सुगंधित रोगनाशक एवं मिष्ठ पदार्थों की आहुति वैदिक मंत्रों के साथ देना।
इसी को हवन अग्निहोत्र भी कहते।
🌹अतिथि यज्ञ🌹
विद्वान सन्यासी वेदज्ञ अतिथि जो देश देशांतर में भ्रमण करते हैं समाज और देश के लिए अपना सर्वस्व लगाते हैं उनका उचित सत्कार सम्मान करना उनको दान इत्यादि करना उनके उपदेशों को जीवन में उतारना।
🌹पितृ यज्ञ🌹
माता पिता एवं कुटुम्ब के बड़े बुजुर्गों का सेवा सत्कार सम्मान करना।
🌹बलिवैश्वदेव यज्ञ🌹
प्रकृति के जीव जंतुओं पशुओं की रक्षा करना उनको संरक्षण देना भोजन इत्यादि से तृप्त करना।
ये पांच महायज्ञ हर मनुष्य का परम धर्म है और कर्तव्य है।
अधिक विस्तार न करते हुये हम देवयज्ञ अर्थात अग्निहोत्र की चर्चा करते हैं।
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🌹अग्निहोत्र यज्ञ🌹
घर घर में यज्ञ करने की परम्परा सबने छोड़ी न होती,
तो आज मुँह पर मास्क लगाने की जरूरत न होती।।।
अग्नि का स्वभाव है उसमें जो भी पदार्थ आप डालेंगे वो उसको कई हजार गुना सूक्ष्म कर के उसके प्रभाव को बढ़ा कर वातावरण एवम वायुमंडल को दे देती है।
ब्राह्मण ग्रंथो में अग्नि को देवताओं का मुख कहा है।
अग्नि के माध्यम से पदार्थों का दहन एवम रूपांतरण की पदार्थ विद्या देवयज्ञ कहलाता है।
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🌹विभिन्न रोगों के लिए यज्ञ हेतु औषधियां🌹
🌹वायरस आदि संक्रमण रोग :🌹
अश्वगंधा, चिरायता, गिलोय, गूगल, नागरमोथा, अपामार्ग, अडूसा, मुलहठ्ठी, जायफल, जावित्री, लौंग, इलायची, हल्दी, तुलसी पत्र, देसी कपूर, राल, गाय के गोबर के कंडे तथा देसी गाय के घी से प्रतिदिन दो बार यज्ञ करें।
🌹कैंसर नाशक :🌹
हवन गुलर के फूल, अशोक की छाल, अर्जन की छाल, लोध, माजूफल, दारुहल्दी, हल्दी, खोपारा, तिल, जो , चिकनी सुपारी, शतावर , काकजंघा, मोचरस, खस, मंजीष्ठ, अनारदाना, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, ,गंधा विरोजा, नारवी ,जामुन के पत्ते, धाय के पत्ते, सब को सामान मात्रा में लेकर चूर्ण करें तथा इस में थोड़ी शक्कर व केसर मिलाकर हवन करें |
🌹संधिरोग ( जोड़ों का दर्द )🌹
संभालू ( निर्गुन्डी ) के पत्ते , गुग्गल, सफ़ेद सरसों, नीम के पत्ते, गुग्गल, सफ़ेद सरसों, नीम के पत्ते, राल आदि।
🌹निमोनिया :🌹
पोहकर मूल, वाच, लोभान, गुग्गल, अडूसा, सबको संभाग ले चूरन कर घी सहित हवन करें।
🌹जुकाम नाशक :🌹
खुरासानी अजवायन, जटामासी , पश्मीना कागज, लाला बुरा ,सब को सम भाग लें, चूर्ण कर यज्ञ करें।
🌹पीनस ( बिगाड़ा हुआ जुकाम )🌹
बरगद के पत्ते, तुलसी के पत्ते, नीम के पत्ते, वाय्वडिंग,सहजने की छाल , सब को समभाग ले चूरन कर इस में धूप का चूरा मिलाकर हवन करें व धूनी दें।
🌹श्वास –कास :🌹
बरगद के पत्ते, तुलसी के पत्ते, वच, पोहकर मूल, अडूसा पत्र, सब का समभाग कर घी सहित हवन करें।
🌹सर दर्द : 🌹
काले तिल और वाय्वडिंग चूरन संभाग ले कर घी सहित हवन करने से व धुनी देने से लाभ होगा |
🌹चेचक –🌹
गुग्गल, लोभान, नीम के पत्ते, गंधक , कपूर, काले तिल, वाय्वासिंग , सब का संभाग चूरन लेकर घी सहित हवन करें व धुनी दें ।
🌹जिह्वा तालू रोग :🌹
मुलहठी, देवदारु, गंधा विरोजा, राल, गुग्गल, पीपल, कुलंजन, कपूर और लोभान सब को संभाग ले घी सहित हवन करें
🌹वातरोग :🌹
पिप्पली का उपयोग करना चाहिए | इस के धुएं से रोगी को लाभ मिलता है |
🌹मधुमेह :🌹
हवन में गुग्गल, लोबान , जामुन वृक्ष की छाल, करेला का डंठल द्वारा आहुति दें।
🌹ज्वर :🌹
ज्वर आने की अवास्था में अजवायन से यज्ञ करें तथा इस की धुनी रोगी को दें।
🌹टायफायड :🌹
नीम , चिरायता , पितपापदा , त्रिफला , आदि जड़ी बूटियों को समभाग लेकर इनसे हवन करें।
🌹नजला,जुकाम, सिरदर्द :🌹
मुनका से हवन करें तथा इसकी धूनी रोगी को देने से लाभ होता है |
🌹नेत्र ज्योति :🌹
इस के लिए हवन में शहद की आहुति देना लाभकारी है | शहद का धुआं आँखों की रौशनी को बढ़ता है।
🌹मस्तिष्क की कमजोरी :🌹
शहद तथा सफ़ेद चन्दन से यज्ञ करना चाहिए तथा इस का धुआं देना उपयोगी होता है |
🌹मनोविकार:🌹
इस के निदान के लिए गुग्गल तथा अपामार्ग का उपयोग करना चाहिए | इस का धुआं रोगी को लाभ देता है |
🌹उन्माद :🌹
मानसिक यह रोग भी रोगी को मृतक सा ही बना देता है | सीताफल के बीज और जटामासी चूरन समभाग लेकर हवन में डालें तथा इसका धुआं दें तो लाभ होगा |
🌹चित्तभ्रम :🌹
इस के लिए कचूर ,खास, नागरमोथा, महया , सफ़ेद चन्दन, गुग्गल, अगर, बड़ी इलायची , नारवी और शहद संभाग लेकर यज्ञ करें तथा इसकी धुनी से लाभ होगा |
🌹पीलिया :🌹
इसके लिए देवदारु , चिरायत, नागरमोथा, कुटकी, वायविडंग संभाग लेकर हवन में डालें |
🌹क्षय रोग:🌹
गुग्गल, सफेद चन्दन, गिलोय , बांसा(अडूसा) सब का १०० – १०० ग्राम का चूरन कपूर ५- ग्राम, १०० ग्राम घी , सब को मिला कर हवन में डालें |
🌹मलेरिया:🌹
गुग्गल , लोबान , कपूर, हल्दी , दारुहल्दी, अगर, वाय्वडिंग, बाल्छाद, ( जटामांसी) देवदारु, बच , कठु, अजवायन , नीम के पते समभाग लेकर हवन करें