अपने माता-पिता गुरुजनों आदि की सच्ची बातों का विरोध न करें। 

     


 


 


 


   अपने माता-पिता गुरुजनों आदि की सच्ची बातों का विरोध न करें। 
         प्रायः व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा स्वयं को अधिक बुद्धिमान मानता है। चाहे वह इतना बुद्धिमान हो, या न हो; पर मानता तो अवश्य है। बहुत कम ईमानदार लोग ऐसे मिलते हैं, जो ठीक-ठीक न्याय पूर्वक अपनी बुद्धि  अथवा योग्यता को वास्तविक रूप में स्वीकार करते हैं। परंतु जो लोग उच्चता ग्रंथि =  (सुपीरियेरिटी कॉम्प्लेक्स) से ग्रस्त हैं, वे तो अपनी बुद्धि और योग्यता को दूसरों से अधिक ही मानते हैं। ऐसे लोग प्रायः दूसरों के साथ अनुचित व्यवहार करते हैं, और उनका अपमान भी करते हैं। उनकी सच्ची झूठी सब प्रकार की बातों का खंडन करते रहते हैं।
       ऐसे दुरभिमानी लोग कभी कभी उस अभिमान के नशे में अपने माता पिता और गुरुजनों से भी झगड़ा करने पर उतर आते हैं। उनकी बुद्धि को भी, अपनी बुद्धि के सामने छोटा मानने लगते हैं। बड़ों की सत्य अनुभवसिद्ध लाभकारी बातों का भी खंडन या विरोध करते हैं, जबकि उनका अपना अनुभव उस विषय में इतना नहीं होता।
परंतु अभिमान के नशे में वे अनेक बार उनकी सच्ची/अच्छी बातों का भी खंडन कर जाते हैं। ऐसा करना, बहुत बड़ी भूल है। ऐसी भूलों से बचना चाहिए। माता पिता और गुरुजनों की बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उनसे बड़े हितकारी लोग आपको मिलना संसार में कठिन ही नहीं, असंभव है। 
आज तो एक छोटी सी सलाह वकील साहब से लेने जाएं, तो सलाह इतनी महंगी हो गई है, कि लाखों रुपए देना पड़ता है . और घर में माता-पिता से मुफ्त में बढ़िया-बढ़िया सलाह मिलती है, और फिर भी लोग उनका लाभ नहीं उठाते।
 ऐसे हितकारी उपकारक माता पिता एवं गुरुजनों की बात पूरे ध्यान से सुनें। उनकी कोई बात यदि प्रमाणों के विरुद्ध हो, तो उसे भले ही न मानें, छोड़ देवें। ऐसी स्थिति में भी उनका अपमान न करें। मौन रहें। परंतु जो उनकी सच्ची, अनुभवसिद्ध, लाभकारी बातें हैं, उनका पालन अवश्य करें। 
तभी आपका कल्याण होगा। अन्यथा अत्यंत दुख और विनाश तो अवश्यंभावी है ही।
 


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