अपने माता-पिता गुरुजनों आदि के सामने अपना मुँह बिगाड़ कर उनका अपमान न करें।


       


                                                   


 


 


 


 अपने माता-पिता गुरुजनों आदि के सामने अपना मुँह बिगाड़ कर उनका अपमान न करें। 
        मैंने अपने जीवन में ऐसे अनेक बच्चों को अनेक बार अनेक स्थानों पर देखा है, जो अपने माता-पिता के बुलाने पर जल्दी से उनके सामने उपस्थित नहीं होते। उनका सम्मान नहीं करते। देर तक अपने कामों में लगे रहते हैं। बहुत देर के बाद माता पिता के सामने उपस्थित होते हैं। माता-पिता की बात पर ठीक से ध्यान नहीं देते। बल्कि झुँझलाकर   उनकी बातों का खंडन भी करते हैं। "पापा, क्या यार आप भी...., मम्मी, क्या यार आप भी......" ऐसी अनुचित भाषा बोलकर उनके साथ असभ्यता का व्यवहार भी करते हैं। जब माता पिता की बच्चों के लिए हितकारी बात, बच्चों को समझ में नहीं आती, तो टेढ़ा मेढ़ा मुँह बनाकर उनका अपमान भी करते हैं। लगभग इसी प्रकार का व्यवहार अनेक विद्यार्थियों में भी देखा है जो अपने गुरुजनों के साथ इस तरह का असभ्य व्यवहार करते हैं। 
         इस प्रकार का व्यवहार करना सभ्यता नहीं है। मेरा उन सभी बच्चों से और विद्यार्थियों से निवेदन है, कि वे सभ्यता सीखें,  अपनी योग्यता को अपने माता-पिता एवं गुरुजनों से अधिक न समझें। क्योंकि यह सत्य है। सत्य को स्वीकार करने से ही व्यक्ति की उन्नति होती है। उसका सुख बढ़ता है। 


 वैसे कर्म करने में प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है। स्वतंत्र का अर्थ होता है, वह सभ्यता का पालन अपनी इच्छा से करे। परंतु यदि वह सभ्यता का पालन नहीं करता, तो इसका नाम स्वतंत्रता नहीं, स्वच्छंदता है। 
स्वतंत्रता अच्छी वस्तु है। स्वच्छंदता बुरी वस्तु है।
      जो लोग सभ्यता का पालन करते हैं, वे जीवन में आगे चलकर अनेक क्षेत्रों में सफल होते हैं। बुद्धिमान धार्मिक सभ्य सदाचारी चरित्रवान एवं सुखी होते हैं। और जो लोग सभ्यता के नियमों का भंग करके स्वच्छंदता करते हैं, अनुशासनहीनता दुष्टता मूर्खता आदि के कार्य करते हैं, वे लोग जीवन में असफल होते हैं। बुढ़ापे में अत्यंत पश्चाताप करते हैं। दुखी और परेशान रहते हैं। कृपया आप ऐसा न करें। सभ्यता का पालन करें, अपने जीवन को सफल तथा सुखी बनाएं।


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