अंतर मोह और प्रेम में
मोह और प्रेम में अंतर
प्रेम दृष्टि जहाँ विस्तृत आत्मीयता का भाव जगाती है समस्त संसार को अपना परिवार बनाती है। वहीं मोह दृष्टि संकुचित हो स्वयं के परिवार से भी सम्यक् प्रेम नहीं कर पाती। प्रेम मुक्ति का पथ है वहीं मोह बन्धन का कारण है।
प्रेम में ख़ुशी है वहीं मोह में दुःख है। प्रेम में माधुर्य है वहीं मोह में कटुता है। प्रेम में जोड़-योग है वहीं मोह में तोड़ है।
प्रेम में विनम्रता है वहीं मोह में अहंता है। प्रेम में निरासक्ति है वहीं मोह में राग और द्वेष।
प्रेम में ज्ञान विद्या प्रकाश है वहीं मोह में अज्ञान अविद्या अन्धकार। प्रेम में त्याग समर्पण, पर सेवा है वहीं मोह में लोभ, स्वयं सेवा है। प्रेम में सुरक्षा है वहीं मोह में असुरक्षा। प्रेम में परमार्थ है वहीं मोह में स्वार्थ है।
प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति है वहीं मोह से प्रकृति, माया का कभी समाप्त न होने वाला आवरण।
चुनाव आपके हाथों में
प्रेम करो या मोह,,,,,,,
मिलना परम से चाहो,
तो विमल प्रेम करलो।
सब प्राणियों में स्थिर,
तज मोह प्रभु यूँ वरलो।।
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दर्शनाचार्या विमलेश बंसल आर्या