आज के वेद विचार

 


 


 


 


 


                                             


 


सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथा 
पूर्वमकल्पयत् ।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षयथो स्वः।
( अघमर्षण मंत्र - 3)
भावार्थ - हे ईश्वर ! आपने ही सूर्य चन्द्र आदि लोक लोकान्तरों को धारण किया हुआ है तथा पृथ्वी लोक , अन्तरिक्ष लोक और आकाश में स्थित विभिन्न लोक लोकान्तरों को व इनमें स्थित पदार्थों को जैसे इस सृष्टि के पूर्व उत्पन्न किया था वैसे ही अब भी उत्पन्न किया है । 
   इस प्रकार हे प्रभु ! आप अनंत ज्ञानवान हैं , अनंत बलवान हैं , अनंत सामर्थ्यवान हैं , अनंत स्मृतिवान हैं । हे प्रभुदेव ! मैं आपसे छुपकर कोई भी काम नहीं कर सकता और कभी  कोई पाप कर्म कृ भी लूं तो आपके दण्ड से बच नहीं सकता । अतः आपकी सर्वज्ञता सर्वशक्तिमत्ता एवं न्यायकारिता का स्मरण करते हुए मैं कभी भी कोई भी पाप कहीं भी नहीं करुं ऐसा पवित्र ज्ञान विज्ञान विवेक वैराग्य और शक्ति सामर्थ्य मुझे प्रदान कीजिए ।
पद्यार्थ - 
पहले की ही भाँति प्रभु ने,
रच दिया यह सारा संसार।
पृथिवी, द्यु, अंतरिक्ष, सूर्य,
चन्द्रादि ग्रहों के बन आधार।
वही प्रभु धारण करता जग,
उससे ही चलता संसार।
आओ नित्य नियम से विमल हो,
भज लें जो सबका कर्त्तार।।


 


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