🔰 ब्रह्मचर्य के लिए भोजन के नियम🔰 Golden Food Rules for Brahmacharya 👇👇👇 "रसेन्द्रियों【 tongue】 को जीते बिना जननेन्द्रियों को जितना असंभव है।" 1. प्याज़ (onion) लहसून (garlic) को तुरंत छोड़ देवे। ये ब्रह्मचारी के लिए विष के समान है । 2.मासाहार का भी त्याग कर देवे। मासाहार के साथ ब्रह्मचर्य की कल्पना भी नही की जा सकती। 3. दूध और फल ब्रह्मचर्य के सबसे श्रेष्ठ भोजन है । 4.लाल मिर्च का सम्पूर्ण त्याग कर देवे , जरूरत हो तो थोड़ी हरी मिर्च ले लेवे , धीरे धीरे उसे भी छोड़ देवे। 5. ज्यादा मसाला , तला भुना भोजन न लेवे 6.रात का खाना 7 बजे से पहले ले लेवे , काफी हल्का हो । 7. भगवान /परमात्मा की याद में बना हुआ खाना ही खाये ,किसी कामी,विकारी के हाथ का जो ब्रह्मचर्य का पालन नही करता है ,बना हुआ न खाए।【most इम्पोर्टेन्ट】 8.हरी सब्जियां खाएं ,सीजन के फल भी। 9.ज्यादा खट्टी चीज़े , ज्यादा मीठा न खाए। 10 . सात्विक भोजन ही ब्रह्मचर्य का आधार है । 11.मौन में भोजन ग्रहण करे। 12 .मोबाइल ,टीवी देखते हुए भोजन न करे। 13. घर का खाना ही खाये ,बाहर के खाने का त्याग करे। 14. धीरे धीरे चबा कर खाएं【32 बार...
वैदिक धर्म की विशेषताएं (१ ) वैदिक धर्म संसार के सभी मतों और सम्प्रदायों का उसी प्रकार आधार है जिस प्रकार संसार की सभी भाषाओं का आधार संस्कृत भाषा है जो सृष्टि के प्रारम्भ से अर्थात् १,९६,०८,५३,१२१ वर्ष से अभी तक अस्तित्व में है।संसार भर के अन्य मत,पन्थ किसी पीर-पैगम्बर,मसीहागुरु,महात्मा आदि द्वारा चलाये गये हैं,किन्तु चारों वेदों के अपौरुषेय होने से वैदिक धर्म ईश्वरीय है,किसी मनुष्य का चलाया हुआ नहीं है। (२) वैदिक धर्म में एक निराकार,सर्वज्ञ,सर्वव्यापक,न्यायकारी ईश्वर को ही पूज्य(उपास्य) माना जाता है,उसके स्थान में अन्य देवी-देवताओं को नहीं। ( ३) ईश्वर अवतार नहीं लेता अर्थात् कभी भी शरीर धारण नहीं करता। ( ४) जीव और ईश्वर(ब्रह्म) एक नहीं हैं बल्कि दोनों की सत्ता अलग-अलग है और मूल प्रकृति इन दोनों से अलग तीसरी सत्ता है।ये तीनों अनादि हैं तीनों ही एक दूसरे से उत्पन्न नहीं होते। ( ५ ) वैदिक धर्म के सब सिद्धान्त सृष्टिक्रम के नियमों के अनुकूल तथा बुद्धि सम्मत हैं।जबकि अन्य मतों के बहुत से सिद्धान्त बुद्धि की घोर उपेक्षा करते ह...
वर-वधू को आशीर्वाद (गीत) सदा सुखी सम्पन्न हो जोडी अजर अमर। बने प्रेम का धाम स्वर्ग सा इनका घर।। प्रण किये विवाह में जो भी, निष्ठा से उनको पालें। दुखियों के बनें सहारे दीनों को भी अपनालें। चलें सेवक बनकर॥१॥ बने प्रेम का धाम।। पत्नी निज स्वामी ऊपर, करदे सर्वस्व निछावर। पति मान करे पत्नी का समझे प्राणों से बढ़कर। प्रेम से रहें मिलकर॥२॥ बने प्रेम का धाम0 फूलों से हों मुस्काते मुख में हो मिश्री घोली। आपस में निशदिन बोलें, कोयल सी मीठी बोली। मधुर हो प्यारा स्वर॥३॥ बने प्रेम का धाम।। दुर्गुण हों जो भी उनको, दें दबा पूर्ण निज बल से। सब काम 'विजय' हों सीधे रहे दूर कपट और छल से।। करें निज ऊँचा सर॥४॥ बने प्रेम का धाम0 ।।