विचार

                                               
यदि किसी व्यक्ति को आप कोई बात समझाते हैं, बार-बार समझाते हैं कि "आप ऐसी गलती न किया करें, क्योंकि आपकी ऐसी गलती से दूसरों को परेशानी होती है।" बार-बार समझाने पर भी यदि वह व्यक्ति समझता नहीं है, अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता, उसे छोड़ता नहीं है, तो इसके दो कारण हो सकते हैं। 
पहला कारण - "उसकी बुद्धि का स्तर कम हो सकता है, इस कारण से वह समझ नहीं पा रहा।" दूसरा कारण - "बुद्धि का स्तर तो कम नहीं है, परंतु वह सत्य को समझना नहीं चाहता अर्थात उसमें ईमानदारी की कमी है। वह अभिमानी है। अभिमान के कारण वह सत्य को समझते हुए भी स्वीकार नहीं करना चाहता।" 
यदि कोई व्यक्ति अच्छा बुद्धिमान हो और ईमानदार भी हो, अभिमानी न हो, तो उसे सत्य समझाया जा सकता है। और वह सत्य को समझ भी सकता है। 
अब संसार में अनेक बार ऐसा देखा जाता है कि , एक व्यक्ति बुद्धिमान तो है, उसके जीवन में अन्य कार्यों को देखने से यह सिद्ध होता है कि इसमें बुद्धि की कोई कमी नहीं है, और इसे इसकी गलती बार-बार बताई जाती है, तब भी यह अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता, उस गलती का प्रायश्चित नहीं करता, उसे दूर नहीं करता। तो ऐसी स्थिति में आपको यह समझ लेना चाहिए, कि यह व्यक्ति ईमानदार नहीं है। यह अभिमानी है। और अभिमान के दोष के कारण सत्य को समझते हुए भी स्वीकार नहीं कर रहा।
ऐसी स्थिति में जो उचित लगे, वैसा अगला कदम उठाना चाहिए। 
अर्थात यदि आप ब्राह्मण स्तर के व्यक्ति हैं, तो उससे झगड़ा नहीं करना चाहिए। बल्कि उसे राजा या ईश्वर के न्याय पर छोड़ देना चाहिए। उस से संबंध तोड़ देना चाहिए। अपने जीवन की शान्ति भंग नहीं करनी चाहिए। और यदि आप क्षत्रिय स्वभाव के व्यक्ति हैं, तो उसे राजा से विधिवत दंड दिलवाकर उसका सुधार करना चाहिए 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।