वेद रक्षा कैसे की गई
वेद रक्षा कैसे की गई ?
क्या वेदों में मिलावट की जा सकती है ?
समाधान: वेद नित्य ईश्वर का नित्य ज्ञान है। इसलिए जिस रूप में वेद इस
कल्प में आज उपलब्ध होते हैं, उसी रूप में वे पिछले कल्पों में भी
अनादिकाल से ईश्वर द्वारा प्रकट किये जाते रहे हैं तथा भविष्य में आने
वाले अनंत कालों में भी वे इसी रूप में प्रकट किये जाते रहेंगे। स्वामी
दयानंद इस विषय को स्पष्ट रूप से लिखते हैं कि ‘जैसे इस कल्प की सृष्टि
में शब्द, अक्षर और सम्बन्ध वेदों में है, इसी प्रकार से पूर्व कल्प में थे और
आगे भी होंगे, क्योंकि जो ईश्वर की विद्या है सो नित्य एक ही रस बनी
रहती है। उनके एक अक्षर का भी विपरीत भाव कभी नहीं होता। सो ऋग्वेद
से लेके चारों वेदों की संहिता अब जिस प्रकार की हैं, इनमें शब्द, अर्थ,
सम्बन्ध, पद और अक्षरों का जिस क्रम से वर्तमान है, इसी प्रकार का क्रम
सब दिन बना रहता है। क्योंकि ईश्वर का ज्ञान नित्य है। उसकी वृद्धि, क्षय
और विपरीतता कभी नहीं होती।’
इस तथ्य को पाणिनि ने अष्टाध्यायी में भी नित्य माना है। ‘वेद में स्वर तथा
वर्णानुपूर्वी भी नित्य होती है।’ निरुक्त में यास्क भी वेदमंत्रों की शब्द रचना और उनकी आनुपूर्वी को नियत मानते हैं।
वेदों की नित्यता के पश्चात् वेदों की शुद्धता की रक्षा का प्रबंध भी इतना
वैज्ञानिक है कि उसमें प्रक्षेप करना असंभव है। क्रम के अतिरिक्त जटा,
माला, शिक्षा, लेखा, ध्वजा, दण्ड, रथ, घन इन आठ प्रकारों से वेद मन्त्रों
के उच्चारण का विधान किया गया है। इस पाठक्रम का विधान ऐतरेय
आरण्यक, प्रतिशाख्यादि में भी उल्लेख है। वेदों के शुद्ध पाठ को सुरक्षित
रखने के लिए इसी प्रकार से अनुक्रमणियां भी पाई जाती हैं।
विदेशी से लेकर स्वदेशी विद्वान वेदों की शुद्धता की रक्षा पर मोहित होकर
अपने विचार लिखते हैं-
मैक्समूलर महोदय-Ancient Sanskrit Literature Page 117 में लिखते
हैं- ऋग्वेद की अनुक्रमणी से हम उसके सूक्तों और पदों की पड़ताल
करके निर्भीकता से कह सकते हैं कि अब भी ऋग्वेद के मन्त्रों, शब्दों और
पदों की वही संख्या है, जो कात्यायन के समय थी।
Origin of Relgion Page 131
वेदों के पाठ हमारे पास इतनी शुद्धता से पहुंचाये गए हैं कि कठिनाई से कोई
पाठभेद अथवा स्वरभेद तक सम्पूर्ण ऋग्वेद में मिल सके।
मक्डोनेल महोदय-
A History of Sanskrit Literature Page 50में
लिखते हैं- आर्यों ने प्राचीन काल से असाधारण सावधानता का वैदिक पाठ
की शुद्धता रखने और उसे परिवर्तन अथवा नाश से बचाने के लिए उपयोग
किया। यह इतनी शुद्धता से सुरक्षित रखा गया है जो साहित्यिक इतिहास में
अनुपम है।