वाल्मीकीय रामायण

वाल्मीकीय रामायण - प्रेरक प्रसंग - 4🌷 यज्ञ की राक्षसों द्वारा विघ्न से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र के अनुरोध पर अयोध्या नरेश दशरथ ने अपने पुत्रों राजकुमार राम और लक्ष्मण को ऋषि के साथ भेज दिया। थोड़ी दूर जाने के बाद ऋषि ने राम को मंत्र समूह रूप "बला" और "अतिबला" नामक विद्या ग्रहण करा दी। जो व्यक्ति की शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक क्षमता बढ़ाने वाली है। उस रात ऋषि और राजकुमार सरयू नदी के किनारे सुखे पत्तों के बिछोने पर सोये। अगली रात उन्होंने गंगा नदी और सरयू नदी के संगम पर स्थित शिवजी के आश्रम में विश्राम किया। यहां से उन्होंने नाव द्वारा गंगा नदी पार की। आगे एक बीहड़ वन में पहुंचे जहां हिंसक पशुओं के अतिरिक्त ताटका नाम की भयंकर राक्षसी का आतंक व्याप्त था। विश्वामित्र जी के समझाने पर कि ताटका जैसी क्रूर अधर्मी राक्षसी स्त्री होते हुए। हुए भी दया की पत्र नहीं राम जी उसे बान से मार दिया ताकि गौ और ब्राह्मण का हित हो। उसी वन में ऋषि और राजकुमार रात को सो गये 🌹 प्रसन्नचित्त हो अगले दिन प्रातः ऋषि ने स्नानादि कर पवित्र हो कर पूर्व की ओर मुख करके राम को बीस से अधिक शक्तियां और अस्त्र - शस्त्र प्रदान किये जैसे वज्रास्त्र, महादिव्य दण्ड चक्र, वरुणपाश, सोमास्त्र, मानव नाम का गन्धर्वास्त्र, धर्मचक्र, विष्णु चक्र, काल चक्र, एन्द्रास्त्र, मोदकी और शिखरी दो गदायें, धर्मपाश, कालपाश, तामस और सौमन अस्त्र। कामोत्पादक मदनास्त्र और मोहित करने वाला पैशाचास्त्र...उनको चलाने और रोकने की विधि भी समझा दी। 🌺 उस दिन चलते चलते वह पक्षियों की मीठी चहचहाहट और वन-पशुओं से दर्शनीय और मनोहर दिखने वाले "सिद्घाश्रम (आजका बक्सर) पहुंचे। पहले यहां महात्मा वामन का तप सिद्ध हुआ था देवों में श्रेष्ठ विष्णु ने भी तप के लिए यहां निवास किया था। रामायण काल में यह ऋषि विश्वामित्र का आश्रम था। 🌹 वहाँ पहुँचने और अतिथि सत्कार के कुछ देर पश्चात राम और लक्ष्मण ने हाथ जोड़कर ऋषि से अनुरोध किया कि आज ही यज्ञ आरम्भ कर दीजिए। तब नियम पूर्वक दीक्षा में प्रवेश कर यज्ञ आरम्भ कर दिया। रात भर राजकुमार आक्षसों से चौकस रहे।... अगली प्रातः राजकुमारों ने उठ कर संध्या उपासना की, परम जाप ( गायत्री मंत्र जप) किया और फिर अग्निहोत्र ( हवन) किया।... यज्ञ दीक्षा ले कर मुनि विश्वामित्र जी मौन थे। राजकुमारों ने आश्रम वासियों से पूछा कि किस समयावधि तक राक्षसों से यज्ञ की रक्षा करनी है। उत्तर मिला छ: दिन तक।.. पांच दिन तक तो यज्ञ निर्विघ्न चला। छटे दिन आकाश में भयानक शब्द हुआ। राक्षस मारीच, सुबाहु ने यज्ञ वेदी पर खून की वर्षा की। उन्हें आश्रम की ओर आते देख राम जी बोले " पश्य लक्ष्मण दुर्वृत्तान् राक्षसान अपि शिताशनान् मानवास्त्र समाधूतान निलेन यथा घना" - - अर्थ - हे लक्ष्मण. ज़रा इन दुराचारी और मांसभक्षक राक्षसों को तो देखो। जैसे वायु बादलों को भगा देता है उसी प्रकार मैं इन्हें मानवास्त्र से अभी उड़ाता हूँ.. यह कह कर राम ने चमचमाता मानवास्त्र मारीच की छाती में मारा। वह भाग गया। अब राम ने आग्नेयास्त्र सुबाहु की छाती पर मारा और वह मर गया। बचे राक्षसों को वायवास्त्र चला कर नष्ट कर दिया। यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो गया। विश्वामित्र जी ने प्रसन्नता भाव से राजकुमारों की प्रशंसा की। फिर सब ने सन्ध्या की।.. यह बाल कांड के उन्नीसवें सर्ग तक का वृतांत है। 🌸🍁🌹 साभार - स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती जी का भाष्य 


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