प्रार्थना
प्रार्थना विषय
अग्निना रयिमश्नवत्पोषमेव दिवे दिवे ।
यशसं वीरवत्तमम्॥ऋग्वेद॥
व्याख्यान- हे महादातः ईश्वराग्ने ! आपकी कृपा से स्तुति करने वाला मनुष्य (मैं) "रयिम्" उस विद्यादि धन तथा सुवर्णादि धन को अवश्य सत्कीर्ति को बढ़ाना वाला तथा जिससे विद्या, शौर्य्य, धैर्य्य, चातुर्य, बल, पराक्रम और दृढ़ांग, धर्मात्मा, न्याययुक्त अत्यन्त वीर पुरुष प्राप्त हों, वैसे सुवर्ण रत्नादि तथा चक्रवर्ती राज्य और विज्ञान रूप धन को प्राप्त होऊं तथा आपकी कृपा से सदैव धर्मात्मा होके अत्यन्त सुखी रहूँ ॥
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत आर्याभिविनयः से उद्धृत