परमात्मा , आत्मा के लिए प्रलय के बाद प्रकृति
प्रश्न - क्या मानव शरीर या किसी भी प्राणी के शरीर में साँस (श्वास ) अपने आप आती है ?
उत्तर - नहीं
प्रश्न - तो फिर ये साँस कौन दिलवा रहा है ।
उत्तर - परम् पिता परमेश्वर ।
प्रश्न - किस तरह ?
उत्तर - इसके लिए विज्ञान से समझाना होगा । आत्मा, परमात्मा ,प्रकृति ये तीन अनादि है । परमात्मा , आत्मा के लिए प्रलय के बाद प्रकृति (जो की महान्धकार , एकरस एवं गतिहीन थी ) से पूरी सृस्टि की रचना करता है । जो प्रकृति एकरस थी उससे कणो (मॉलिक्यूल ) का निर्माण परमेश्वर अपने बल से ११ तरह की वेद छंद की गतियों ( सूत्रात्मा वायु , धनंजय , प्राण, अपान , व्यान, समान, उदान, नाग, कूर्म, कृकल एवं देवदत्त ) से प्रकृति में विकार करके बनाता है । वेद में सात तरह मुख्य छंद है जैसे गायत्री , उष्णिक , अनुस्टुप , बृहती ,पंक्ति, त्रिस्टुप एवं जगती है ।
जितनी भी जड़ वस्तु हमें दिखाई दे रही है या नहीं दिखाई दे रही है उन सभी के कणो बनाने /बांधने / थामने के लिए परमात्मा ११ तरह की गति अपने बल से प्रलय आने तक हर कण में लगातार लगाकर रखता है एवं इन्ही गतियों के बल पर प्रोटोन ,न्यूट्रॉन इलेक्ट्रान गति कर रहे है सत्त्व गुण की वजह से विधुत आवेश हो रहा है , और इसी विधुत आवेश से पूरी सृस्टि बनी है । यदि परमात्मा ये विभिन्न गतियों से किसी कण में बल ना लगाए तो कोई भी कण , या शरीर नहीं बन सकता । जिस समय ये बल परमात्मा हटा लेता है उसी को प्रलय कहते है ।
मानव शरीर / किसी भी प्राणी के शरीर /या किसी भी जड़ वस्तु के कण को बांधने/थामने के लिए गायत्री छंद की गति बाहर की तरफ जाती है और त्रिस्टुप छंद की गति बाहर से अंदर की तरफ आती है । प्राणिजगत में इन्ही गतियों से प्राणों के सहारे ऑक्सीजन अंदर -बाहर आती है और इसी से प्राणियों का जीवन चल रहा है ।
आधुनक विज्ञान और जितने भी मत -मतान्तर है इनको इसकी जानकारी नहीं है , जो सत्य है वही धर्म है जो झूट है वही अधर्म है ।
इस अधर्म की वजह से ही दुनिया विनाश की तरफ जा रही है ।
मेरा उन अज्ञानीयो से प्रश्न है कि जो किसी शरीरधारी / अवतार को परम पिता परमेश्वर मान रहे हैं, तो उनको सांस कौन दिलवा रहा है ? और यदि हम किसी पत्थर प्लास्टिक, लकड़ी को ईश्वर मान रहे हैं तो मेरा उनसे भी कहना है कि इनके कण को कौन थामा हुआ है ?