ओ३म् कृतं स्मर कविता 

 कविता                                                                                                       

ओ३म् कृतं स्मर
काव्यभाव
कितना किया ॐ जप वन्दे,
कितने पेज हुआ (वेद) स्वाध्याय।
कितना अपना किया निरीक्षण,
कितनी सेवा जग दी भाई।
१-कितना छोड़ा झूठ छल कपट,
कितने छोड़े बुरे विचार।
कितनों की हिंसा की तन मन ,
कितने दिन कैसे गए भाई।
२- कितनों का चिंतन मन आया,
कितनों पर तूने ध्यान दिया।
कितनों के तूने पौंछे आंसू,
कितनों को जीवन दान दिया।
३- कितनों को तूने वस्त्र उढ़ाये,
कितनों पर तू हुआ मेहरबान (दया)।
कितनों के तू दिल पर छाया,
कितनों का दिल किया परेशान।
४-कितनों को तू माने अपना,
कितने तुझको मानें अपना।
कितनों ने तुझे भेद बताया,
कितनों से तूने भेद छिपाया।
५- कितना तेरा ज्ञान बढ़ा,
कितना अज्ञान हटा प्रकृति।
कितना तेरा कर्म हुआ शुभ,
कितना उपासना और भक्ति।
६- कितना तुझको आगे बढ़ना,
कितने अब तक लक्ष्य सधे।
कितने लक्ष्य बचे आगे को,
कितने लक्ष्य अब और बचे।
७-कितनों को तूने लूटा खसोटा,
कितनों ने तुझको लूटा।
कितनों को तूने मारा पटका,
कितनों ने तुझको कूटा।
८- कितनों ने तुझको चाहा,
और कितनों की तू चाह बना।
कितनों ने तुझे राह दिखाई,
कितनों की तू राह बना।
९- कितनों का उपकार करे नित,
कितनी मातृ पितृ भक्ति।
कितना किया समर्पण ईश्वर,
कितनी गुरु, राष्ट्र के प्रति।
१०- ॐ कृतं स्मर वेद की वाणी,
यही सिखाये रे।
विमल हो निष्कामी भजे ॐ जो,
सर्वसुखों को पाए रे।।


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