ओ३म् अ॒स्मभ्यं॑ त्वा वसु॒विद॑म॒भि वाणी॑रनूषत ।  गोभि॑ष्टे॒ वर्ण॑म॒भि वा॑सयामसि ॥ सामवेद 575 पूर्वार्चिक पवमान काण्ड

आज का वैदिक भजन 🙏315
10/10, 
ऋग्वेद 9/104/4


ल ला, ल ला, ल ला  
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 
काहे आया है अकेला 
कहाँ गायक अलबेला 
आ गवैये को भी संग ले के आ 
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 
मनवा जा, मनवा जा रे जा  


आ तुझको पहचान बता दूँ 
वो लगता है कैसा ?
सच्चे धन का देने वाला 
वो प्रभु एक ही ऐसा 
ऐसे याज्ञिक को हृदय में बसा लूँ 
खुद को यज्ञ भागी बना लूँ 
उसकी सारी विभूतियाँ हैं ज्योति-प्रदा 
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 
मनवा जा, मनवा जा रे जा  


भाव भरे हैं तेरे ही रंग में 
आ "प्रभु" खेलें होली 
रग-रग में ऐसे बस जाये, 
बोलूँ तेरी बोली 
धर्म पालूँ तो देना गवाही 
प्रार्थना भक्ति स्तुति का हूँ राही 
अमृत, धर्म-प्रचार का खूब पिला 
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 
काहे आया है अकेला 
कहाँ गायक अलबेला 
आ गवैये को भी संग ले के आ 
मनवा जा, मनवा जा रे जा रे 


तर्ज :- चन्दा जा चन्दा जा रे जा रे
रचनाकार व स्वर :- श्री ललित सहानी जी - मुम्बई


अलबेला = अनुपम , अनोखा, अनूठा , बेजोड़, छैला, सुन्दर 
याज्ञिक = यज्ञ करने वाला (ईश्वर) 
विभूतियाँ = अलौकिक शक्तियाँ, प्रभुत्त्व,
ज्योति प्रदा = ज्योति फैलाने वाली,
वसु = सच्चे धन धान्य देनेवाला 
गवाही  = साक्षी प्रमाण 
गवैया = गानेवाला, गायक


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