मोरवी का वार्षिकोत्सव


आर्यसमाज टंकारा-मोरवी का वार्षिकोत्सव             

महर्षि दयानन्द जी की जन्मभूमि गुजरात में मोरवी के निकट टंकारा ग्राम व कस्बा है। यहां पर ऋषि जन्म भूमि न्यास की ओर से एक भवन का निर्माण कराया गया है जिसमें ऋषि दयानन्द का जन्मगृह-कक्ष है और एक हाल में दयानन्द जी के जीवन को चित्रावली के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इसे दर्शक-दीर्घा कहा जाता है। जन्म गृह के निकट ही ऋषि जन्म भूमि न्यास का एक विस्तृत परिसर है जिसमें एक भव्य यज्ञशाला सहित बालकों का गुरुकुल चलता है तथा बोधोत्सव आदि अवसरों पर देश-देशान्तर से आने वाले ऋषिभक्तों के निवास हेतु अनेक प्रकार के बहुमंजिले भवन आदि हैं। इन दोनों स्थानों से कुछ दूरी पर, 1 किमी.से भी कम, आर्यसमाज-टंकारा है जिसका अपना भव्य भवन एवं उसके सम्मुख खुला आंगन व परिसर है। इस आर्यसमाज की स्थापना वर्षों पूर्व स्वामी श्रद्धानन्द जी के करकमलों से ऋषि बोधोत्सव के दिन हुई थी। प्रत्येक शिवरात्रि को सायं 5 से 7-8 बजे तक यहां वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें ऋषि जन्मभूमि न्यास में आयोजित बोधोत्सव में पधारने वाले ऋषिभक्त बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। हम 6 बार ऋषि जन्मभूमि टंकारा गये हैं और सभी अवसरों पर हमने आर्यसमाज टंकारा के वार्षिकोत्सव में भाग लिया है। इस वर्ष यह उत्सव 21 फरवरी, 2020 को सायं 5.00 बजे से आयोजित हुआ। हम इस आयोजन में सम्मिलित हुए। समाज के आंगन को टैंट लगाकर सजाया गया था। एक सुन्दर मंच भी बनाया गया था जिस पर आर्यसमाज के अनेक विद्वान विराजमान हुए। सबसे पहले यज्ञ किया गया। यज्ञ के बाद आर्यसमाज के विख्यात गीतकार भजन सम्राट पं. सत्यपाल पथिक जी ने यज्ञ प्रार्थना कराई। युवक श्री देव कुमार जी समाज के मंत्री हैं। उन्होंने बताया कि वार्षिकोत्सव में यजमान उस दम्पति को बनाया जाता है जिसका विवाह उत्सव से पूर्व एक वर्ष की अवधि के भीतर हुआ हो। इस वर्ष ऐसे तीन दम्पति यज्ञ के यजमान बने। मंत्री जी ने बताया कि आर्यसमाज के अधिकांश सदस्य युवक व युवती हैं। इसके बाद पं. सत्यपाल पथिक जी का एक भजन हुआ जिसके बोल थे ‘ऋषि की कहानी सितारों से पूछों, बहारों से पूछों नजारों से पूछो’। कुछ महीने पूर्व इस आर्यसमाज के प्राण श्री हंसमुख भाई परमार जी का देहान्त हुआ है। विद्वानों को कहा गया कि वह उन्हें स्मरण कर उनको श्रद्धांजलि दे सकते हैं। पथिक जी ने इस श्री हंसमुख भाई परमार के विषय में कहा कि वह ऋषि दयानन्द के दीवानें थे। वह जब भी ऋषि महिमा की बातें सुनते थे तो उनकी आंखें गिली हो जाती थी। पथिक जी ने श्री हंसमुख परमार जी के साथ अपने सम्बन्धों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि श्री परमार अनुशासन प्रिय थे। वह जिस कार्यक्रम का संचालन करते थे वहां वह समय से पूर्व पहुंच कर उसे उत्तमता से अपना कार्य करते थे। पथिक जी ने परमात्मा से प्रार्थना की श्री हंसमुख परमार जी की आत्मा को शान्ति मिले। वह पुनर्जन्म लेकर दूसरों का मार्ग दर्शन करें। समाज की ओर से मंचस्थ सभी विद्वानों का स्वागत एवं सत्कार किया गया। 


समाज के मंत्री श्री देव कुमार ने बताया कि श्री हंसमुख भाई परमार जी ने अनेक आर्यवीरों का जीवन निर्माण किया। वह आर्यसमाज टंकारा के उपप्रधान थे। वह समय समय पर समाज के अनेकानेक पदों पर रहे। वह समाज के सदस्यों के पिता तुल्य थे। उन्होंने हमारे जीवनों का निर्माण किया। समाज में दैनिक यज्ञ की परम्परा का शुभारम्भ उन्होंने ही किया था। मंत्री जी ने कहा कि श्री परमार जी ने ‘कृण्वन्तो टंकारा आर्यम्’ की घोषणा की थी। इसके लिये उन्होंने 25 वर्षों की एक योजना बनाई थी। इस कार्य के लिये अनेक साधनों की आवश्यकता थी। हम सब युवा सदस्यों ने इस चुनौती को स्वीकार किया था। इस कार्य के लिये हमने 9.00 लाख रुपये की लागत से एक प्रचार वाहन वा रथ भी क्रय किया है जिसका लोकार्पण व शुभारम्भ आज के उत्सव में किया जा रहा है। इस वाहन के लिये इस समाज के आर्यवीरों ने आर्थिक सहयोग किया। मंत्री श्री देवकुमार जी ने कहा कि हमारे आर्यवीर गुण तथा मात्रा दोनों में श्रेष्ठ हैं। 


मंत्री श्री देवकुमार जी ने कहा कि इस समाज में वेद प्रचार सप्ताह के स्थान पर वर्ष में एक बार ‘वेद-प्रचार-चातुर्मास’ मनाया जाता है। इस अवधि में प्रतिदिन दो परिवारों में यज्ञ कराया जाता है। आर्यसमाज टंकारा से जुड़े ऐसे कई परिवार हैं जो दैनिक यज्ञ करते हैं। अनेक साप्ताहिक एवं पाक्षिक यज्ञ करते हैं। यहां की महिला सदस्यायें मौखिक प्रचार करती हैं और व्याख्यान भी देती हैं। यह सब कार्य श्री हंसमुख भाई परमार जी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से सम्भव हुआ। इसके बाद स्वामी शान्तानन्द जी, माता उत्तमायति, पं. सत्यपाल पथिक जी तथा श्री रामनिवास गुणग्राहक जी के कर-कमलों द्वारा नये प्रचार वाहन का लोकार्पण किया गया। 


नये वाहन वा रथ का प्रयोग आर्यसमाज के प्रचार कार्यों के लिये किया जाना है। इसके लिये चार ग्रामों का चयन किया गया है। प्रत्येक रविवार को कुछ आर्यवीर इस वाहन से इन गांवों में जायेंगे। वाहन को गांव के चैराहे पर खड़ा किया जायेगा। ग्रामों के आर्यसमाजी कार्यकर्ताओं को इसकी पूर्व सूचना की जाया करेगी। प्रचार-रथ के सामने बैठकर ग्रामवासी पहले यज्ञ करेंगे। इसके बाद भजन व प्रवचन की व्यवस्था भी रहेगी। प्रचार-रथ में बिक्री सहित निःशुल्क वितरण का साहित्य भी उपलब्ध रहेगा। रथ में पुस्तकालय भी होगा। इच्छुक व्यक्तियों को पुस्तकों का आदान-प्रदान किया जायेगा। साहित्य की बिक्री भी की जायेगी। इसके बाद मंत्री जी ने आर्य विद्वान एवं नेता श्री वाचोनिधि आर्य को श्री हंसमुख परमार जी संबंधी संस्मरणों को सुनाने के लिये आमंत्रित किया। 


श्री वाचोनिधि आर्य ने श्री हंसमुख भाई परमार से जुड़े अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि श्री परमार बड़ी संख्या में आर्यसमाज के तपस्वी एवं निःस्वार्थ भाव से काम करने वाले कार्यकर्ता तैयार करके गये हैं। यह देखकर खुशी होती है। श्री वाचोनिधि आर्य ने कहा कि मनुष्य की मृत्यु के बाद उस आत्मा का पुनर्जन्म होता है। वह अनुभव करते हैं कि श्री हंसमुख परमार जी पुनः संसार में आयेंगे और वैदिक धर्म का प्रचार करेंगे। श्री आर्य ने श्री परमार के अन्दर नेतृत्व के गुणों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वह इस समाज में सन् 1987 से निरन्तर आ रहे हैं। समाज का वर्तमान भवन आकर्षक एवं सुविधाओं से युक्त है। इस नये भवन की श्री वाचोनिधि जी ने प्रशंसा की। श्री वाचोनिधि जी ने कहा कि श्री परमार ने पूरे गुजरात में आर्यसमाज का कार्य किया। पूरे गुजरात प्रान्त में वेद प्रचार के लिये वह श्रम करते थे। वह एक चलती फिरती संस्था थे। उनका स्वभाव एक मिलनसार व्यक्ति की मिसाल था। किसी परिवार वा संस्था का मुख्य व्यक्ति न रहे तो वह परिवार व संस्था नष्ट हो जाती है। श्री हंसमुख भाई परमार जी के अनेक उत्तराधिकारी हैं। वह सब योग्य आर्यवीर हैं। वह श्री परमार जी के जीवन से प्रेरणा लेकर कार्य जारी रखेंगे। 


श्री वाचोनिधि आर्य जी ने कहा कि श्री परमार जी का अभाव हमारे लिये किसी सदमे से कम नहीं है। समाज में उनके उत्तराधिकारियों को देखकर साहस बढ़ता व ढांढस मिलता है। श्री परमार के कार्य बोलते रहेंगे। श्री वाचोनिधि जी ने आर्यसमाज टंकारा के स्तम्भ डा. दयाल आर्य जी के व्यक्तित्व एवं गुणों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि श्री हंसमुख भाई परमार के न रहने से गुजरात प्रान्त में आर्यसमाज का कार्य अवश्य प्रभावित होगा। श्री परमार ने अपने लिये कुछ नहीं किया। श्री वाचोनिधि जी ने श्री परमार की स्मृति में कोई पुरस्कार आरम्भ करने की प्रेरणा समाज के अधिकरियों को दी। श्री परमार ने अनेक आदर्श स्थापित किये हैं। उनके कार्यों से प्रेरणा लेने सहित उन्हें जारी रखा जाना चाहिये। आर्यसमाज के मंत्री श्री देव कुमार जी ने कहा कि श्री हंसमुख परमार सरकारी शिक्षक रहे। मंत्री जी ने एक घटना सुनाई। उन्होंने बताया कि एक बार कुछ आर्यवीर श्री परमार के साथ दूसरे नगर में गये। वहां कार्य पूरा होने पर परमार जी थोड़ी देर के लिए वहीं रुक गये। आर्यवीरों को टंकारा लौटना था परन्तु उनका उस नगर में फिल्म देखने का कार्यक्रम बन गया। वह जब टंकारा लौटे तो परमार जी उन्हें आर्यसमाज में मिले। उन्होंने युवकों से पूछा कि देर कैसे हो गई। आर्यवीरों ने बताया कि वह फिल्म देखने लगे थे। इस प्रति उत्तर में श्री हंसमुख परमार ने दो वाक्य कहे। यह कि मेरे अपने बच्चे बिगड़ जायें तो मुझे मंजूर है। दूसरा वाक्य था, परन्तु आप नहीं बिगड़ने चाहियें। 


कार्यक्रम में एक युवा बहिन ने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में उत्तम कार्य किये। विदुषी बहिन ने महर्षि दयानन्द के नारी उद्धार कार्यों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने ही नारियों को वेदों को सुनने सहित वेद पढ़ने का अधिकार भी दिया है। महर्षि ने ही नारियों को पुरुषों के समान अग्निहोत्र यज्ञ करने का अधिकार भी दिया। 4-5 वर्ष की एक बच्ची रूचा ने पहले नमस्ते बोला और उसके बाद स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना के आठ मंत्रों का पाठ किया। इसके बाद आचार्य इन्द्रदेव सत्यनिष्ठ, दिल्ली का व्याख्यान हुआ। अपने व्याख्यान के आरम्भ में उन्होंने ओ३म् का उच्चारण किया व श्रोताओं से कराया। आचार्य जी ने कहा कि आर्यसमाज, टंकारा की मानव निर्माण व समाज कल्याण की योजनायें विश्व के लिये आदर्श हैं। उन्होंने आर्यसमाज के सदस्य युवक व युवतियों की एक जैसी वेशभूषा की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि मेरे पिता ने हमें संस्कार दिये। मेरे पिता महर्षि दयानन्द जी के भक्त थे। श्री इन्द्रदेव जी ने श्री हंसमुख परमार जी के गुणों को श्रोताओं को बताया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने हमें बताया है कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर हमारे पास है। श्री इन्द्रदेव जी ने आर्यसमाज की उन्नति के लिये अपनी शुभकामनायें दी। आचार्य जी ने कहा कि हम सबको ऋषि दयानन्द के विचारों व सिद्धान्तों पर विचार करना चाहिये और उन्हें अपने जीवन में उतारना चाहिये। उन्होंने श्रोताओं को कुछ सुझाव भी दिये। उनके सुझाव थे, 1- सन्तानों को प्रति दिन प्रातः अपने माता-पिता को नमस्ते बोलने सहित उनके चरण स्पर्श करने चाहियें। 2- घर में जो वृद्ध हों उनके पास कुछ समय बैठना और उनसे विचारों का आदान प्रदान करना चाहिये। 3- माता-पिता की शिक्षाओं पर सभी सन्तानों को चलना चाहिये जिससे उन्हें प्रसन्नता का अनुभव हो। 4- माता-पिता से वार्ता करते व विवाद की स्थिति में अपनी आवाज उनकी आवाज से नीची रखनी चाहिये। आचार्य जी ने सन्तानों की वर्तमान स्थिति का चित्रण भी किया। आचार्य जी ने कहा कि सन्तानें अपने माता-पिता से प्रायः तेज आवाज में बोलते हैं तथा 5- जो व्यक्ति अपना निर्माण करता है वह समाज के निर्माण में भी योगदान कर सकता है। आचार्य जी ने अपने वक्तव्य को विराम देते हुए आर्यसमाज टंकारा के कार्यों की पुनः प्रशंसा की। 


आर्यसमाज टंकारा के मंत्री श्री देव कुमार जी ने उन महिलाओं के नाम लिये जिन्होंने इस वर्ष आर्यसमाज से जुड़कर दैनिक अग्निहोत्र करना आरम्भ किया है। इन नामों में एक नाम चेतना बहिन जी का था। कुल 6-7 नाम बताये। इन सभी बहिनों को माता उत्तमायति जी के द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। यह सभी बहिने युवती थी। माता उत्तमायति जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि वह प्रचार हेतु समाज को एक महीने का समय देने के लिये तैयार हैं। वन्दनीय उत्तमायति जी ने हंसमुख परमार जी का स्मरण कर उनकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि नारी जाति को शस्त्र व शास्त्र का ज्ञान कराना समय की आवश्यकता है। हमें श्री परमार जी के कार्यों को गति प्रदान करनी चाहिये। यह कार्य श्री परमार जी के पदचिन्हों पर चल कर हो सकता है। उत्तमायति जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द को शिवरात्रि के दिन ही बोध हुआ था। उन्होंने पूछा कि हमें कब बोध होगा? हम अब भी अन्धविश्वासों में फंसे हुए हैं। माता उत्तमायति जी ने कहा कि यदि हम ऋषि दयानन्द जी की दस प्रतिशत बातों को भी मान लें तो देश का सुधार व कल्याण हो जायेगा। इसके साथ ही उन्होंने अपना सम्बोधन समाप्त किया। 


कार्यक्रम अभी लगभग आधा घंटा और चलना था। हमें टंकारा से राजकोट पहुंच कर रात्रि में वडोदरा की रेलगाड़ी से यात्रा करनी थी। अतः हमें कार्यक्रम के बीच में ही ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास में आना पड़ा जहां से हम राजकोट के लिये प्रस्थान कर रेलवे स्टेशन पहुंच गये। भविष्य में हम आर्यसमाज टंकारा की समस्त गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे। आर्यसमाज, टंकारा एक आदर्श समाज है। हमें उसका यथाशक्ति सहयोग करना चाहिये। ओ३म् शम्। 


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।