मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
बढ रहा अत्याचार।
धरा रही है पुकार ।
हे नाथ ले अवतार ।
दया अब कीजिए।।
बस दिखे है बुराई ।
नैनों ने लाज भुलाई।
तुम्ही से आस लगाई ।
साथ हमें दीजिए।।
काम करें दानव का ।
नाम नही मानव का ।
रूप धर माधव का।
चक्र को चलाईए।
प्रेम बना है व्यापार ।
छिन ग ई है बहार ।
नाथ अब हो उद्धार ।
हाथ तो बढाईए।