महा कवि नीरज की कविता

महा कवि नीरज की कविता


करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है
 हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है !


 किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें 
 कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है !


 कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा 
 खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है !


 तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें 
 उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है !


 हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल 
 अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है !


 बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की 
 जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है !


 अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज' 
 हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है !


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