स्वामी शान्तानन्द सरस्वती
दान देना देवत्व का कार्य है जिसमें देवत्व के संस्कार होते हैं वही व्यक्ति दान कर सकता है अन्यथा नहीं कर सकता ।
दान दो प्रकार का होता है (1 ) ब्रह्म दान ( 2) द्रव्य दान । ब्रह्म दान = ईश्वरीय ज्ञान विज्ञान का दान । द्रव्य दान = धन सम्पत्ति आदि का दान । इन दोनों दान में ब्रह्म दान बडा होता है ।
इतना अवश्य है कि यदि धन की कमी है तो भी देवत्व संस्कार वाला व्यक्ति कम दान करेगा अथवा धन नहीं है तो श्रमदान करेगा पर दान करेगा जरूर ।
यदि देवत्व के संस्कार होते हुए भी सही समय में सही कार्य के लिए कोई व्यक्ति दान नहीं कर पाता और जब दान करने हेतु शक्ति सामर्थ्य धन ऐश्वर्य नहीं रहता व दान करने की इच्छा होती है तब बहुत पछताना पडता है । याद रहे मृत्यु काल में अपने स्वयं के द्वारा किया गया दान धर्म परोपकार ही सहायक होता है व सुख देता है तथा परलोक में भी साथ जाता है । इसलिए हे मनुष्यों दानी बनो । परोपकार हेतु जितना धन आप दान करोगे उससे कई गुना धन आपको ईश्वर की कृपा से प्राप्त होगा और जीवन सुखमय बनेगा ।