लोटे की चमक 

लोटे की चमक       

एक समय की घटना है। ‘श्री रामकृष्ण परमहंस’ रोज बहुत लगन से अपना लोटा राख या मिट्टी से मांजकर खूब चमकाते थे।


श्री परमहंस का लोटा खूब चमकता था। उनके एक शिष्य को श्री रामकृष्ण द्वारा प्रतिदिन बहुत मेहनत से लोटा चमकाना बड़ा विचित्र लगता था।


आख़िर उससे रहा नहीं गया। एक दिन वह श्री रामकृष्ण जी से पूछ ही बैठा-


 “महाराज! आपका लोटा तो वैसे ही खूब चमकता है। इतना चमकता है कि इसमें हम अपनी तस्वीर भी देख ले। फिर भी रोज-रोज आप इसे मिट्टी, राख और जून से मांजने में इतनी मेहनत क्यों करते है?”


गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस मुस्कुरा उठे हँसकर बोले- 


“इस लोटे की यह चमक एक दिन की एक मेहनत से नहीं आई है; इसमें आई मैल को हटाने के लिए नित्य-प्रति मेहनत करनी ही पड़ती है। ठीक वैसे ही जैसे जीवन में आई बुराईयों, बुरे संस्कारो को दूर करने के लिए हमें रोजाना ही संकल्प करना पड़ता है।"


"संकल्प को अच्छे चरित्र में बदलने के लिए हमें रोजाना के अभ्यास से ही दुर्गुणों का मैल दूर करना पड़ता है। लोटा हो या व्यक्ति का जीवन, उसे बुराइयों के मैल से बचाने के लिए हमें रोजाना ही कड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। तभी इस लोटे की चमक या इंसान की चमक बची रह सकती है।” 


✏ इस प्रसंग से दो शिक्षाएँ मिलती हैं। एक तो यह कि.. प्रत्येक व्यक्ति को इसी प्रकार नित्य अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए।


दूसरा यह कि.. प्रत्येक कार्य चाहे वह देखने में लोटा माँजने जैसा तुच्छ ही क्यों न हो अगर मनोयोग से किया जाए तो उसमे विशिष्ट चमक बन कर आकर्षण पैदा करता है। अर्थात साधारण कर्म भी असाधारण एकाग्र मनोयोग से असाधारण हो जाता है।


यही सिधांत जीवन के प्रत्येक क्षण के संबंध में भी काम करता है... आपने अक्सर सुना होगा कि...


 ‘जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्णता से जीयो’...


अर्थात ‘साधारण क्षण को भी विशिष्ट भाव से जीना ही जीवन को संपूर्णता से जीना कहलाता हैं।‘


 


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