कविता
दिया प्रकृति ने हमको मौका,
अंतर्मुखी हो अवसर चोखा।
प्रकृति को अनुकूल करें सब।
ध्यान मौन कर धूल (गन्दगी) हरें सब।
विषय वासना हट जाएगी।
बाह्य रोक खुद लग जायेगी।
अनावश्यक और उल जुलूल।
बचेंगे वार्ता व्यर्थ फिजूल।
अपरिग्रह से शांति बढ़ेगी।
जनता कर्फ्यू क्रांति करेगी।
मिटेंगे वायरस स्वतः हो नष्ट।
हटेंगे सबके दुःख और कष्ट।
कुछ घर के बचे कार्य निपटेंगे,
जप स्वाध्याय से आर्य (श्रेष्ठ) बनेंगे
खुद से खुद का मान मिलेगा।
चिंतन मनन से ज्ञान बढ़ेगा।
ईश्वर में भी रुचि बढ़ेगी,
इंसानियत देवत्व गढ़ेगी।
जिसके लिए मिली नर गाड़ी।
सार्थक होगी तन मन नाड़ी।
ईश्वर से मिलने का मौका,
होगा भोजन भजन भी चोखा।
बिन खर्चे का सरल उपाय।
जो अपनाए विमल हो जाय।
सकारात्मकता से जो जिये,
वही ॐ रस अमृत पिये।
आओ करें दिवस अनुकूल,
बनकर उसके न्यारे फूल।।