जीवन

 



2 मिनट के लिए अपना समय निकालकर इसे एक बार पढ़े और फिर विचार व्यक्त करें कि आप क्या हो वास्तव में?


 


 मरने के बाद न कोई मुसलमान रह जाता है, न हिन्दू न ईसाई, न जैन, न पारसी, बौद्ध। ये सब जीते जी के बोझ और कलह की जड़ हैं जो सुख चैन छीनने का अलावा कभी कुछ और नही देते हैं मनुष्य को।


दुनिया ईश्वर की है किसी मुसलमान, हिन्दू, ईसाई, बौद्ध के बाप की नही ..जो पूरी दुनिया पर कोई अकेले कब्ज़ा कर लेने का सपना देखे। इसलिए ईसाईयत, इस्लाम, हिंदूवाद फैलाने के चक्कर मे जीवन को व्यर्थ न गवाएं कोई। क्योंकि 1400 वर्ष पहले मुहम्मद यही सपना देखते हुए कब्र में दफन हो गए, करोड़ो मुसलमान खून खराबा करते करते मरकर चले गए दुनिया से...पर आज तक पूरी धरती पर इस्लाम का कब्ज़ा नही हो पाया। कभी ध्यान दिया है कि जहाँ मुस्लिम हैं वहाँ अधिकांश मुस्लिम जानवर से भी बुरी स्थिति में जी रहे हैं। ईसाइयों का भी यही हाल देखने को मिल जाएगा। हिन्दू तो अपने देश मे निर्धन, भिखारी जीवन भोग रहा है। ईश्वर ने हमे मानव शरीर संसार का सुख, आनंद भोगने के लिए दिया है न कि लड़ने-झगड़ने, धरती पर अधिकार कर दूसरों को मारकर अधिकार विहीन करने के लिए। 


तुम्हारा क्या है जगत में ?
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शरीर ईश्वर का दिया हुआ, जीवन ईश्वर का दिया हुआ, प्राण ईश्वर का दिया हुआ, हवा, पानी, आकाश, प्रकाश, अंधेरा, वृक्ष, पौधे, पत्थर, सोना, चांदी, धातु, धन, संपदा, जीव-जंतु इत्यादि सबकुछ ईश्वर का ही दिया हुआ है। मानव का कुछ भी नही है इस संसार मे। तो अधिकार किस चीज़ पर और क्यों करना चाहते हो जब सबको एक दिन मरकर विलुप्त ही हो जाना है। जो चीज़ हमारी हो ही नही सकती सदा के लिए  तो उसको पाने के लिए दूसरों से छीनने का प्रयास क्यों किया जाय ? जबरदस्ती का अधिकार करने के प्रयास में कर्म बिगाड़ लेना, अपना जीवन तक नष्ट कर देना पागलपन नही तो और क्या है ? संसार की वस्तु संसार मे रहती है सदा, कहीं किसी के साथ जाती नही। फिर ऐसी वस्तु के लिए मन, बुद्धि को दूषित करके जीवन को नर्क बनाने का क्या मतलब है ?


जिस वस्तु को भोग कर जीवन को सुगम-सरल, आनंदमय बनाना चाहिए...उस वस्तु के लिए अपने जीवन के मूल्यवान क्षणों को नष्ट करके कष्ट भोगने की मूर्खता आत्मघातक ही सिद्ध होती है हमेशा।


मानव और मानवता क्या है ?
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मानव को जीने के लिए हमेशा मानव की आवश्यकता पड़ती है। मानव बिना प्रेम, सुख, आनंद के जीवित ही नही रह सकता और यह सब हमे दूसरे मानवों से ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए वेदधर्म सदा मानव (मनुष्य) बनने की प्रेरणा और शिक्षा देता है। मानव बनना ही तो मानवता है, मानव के गुण, कर्म, स्वभाव को धारण करना ही मानव धर्म कहलाता है। मानव गुणों के अनुसार व्यवहार करने को मानवता कहा जाता है। धरती पर एकछत्र राज केवल मानवता का वेद संस्कार रखने वाले मानवों का ही हो सकता है, तभी सम्पूर्ण पृथ्वी सुखी हो सकती है, सुरक्षित हो सकती है।



ढोंगी लोग
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जो लोग ढोंग स्वरूप मानवता और मानव धर्म का नाम जपते हैं उनके जीवन मे मानव होने का एक भी गुण नही होता है वे या तो हिन्दू होते हैं या मुसलमान होते हैं या ईसाई होते हैं या बौद्धिष्ट होते हैं, या जैनी होते हैं, या यहूदी होते हैं, आस्तिक होते हैं या नास्तिक होते हैं लेकिन मानव (मनुष्य) कोई नही होता है। फिर इनमे मानवता होने का कोई प्रश्न ही नही उठता है। ये सब ठग हैं, सब अपने अपने संप्रदाय/मज़हब/रिलिजन/पंथ की दुकान चलाने के लिए मात्र मानवता शब्द का सहारा लेते हैं, मानवता नही रखते हैं अंदर। मानवता और मानवधर्म जैसे शब्द दूसरों को मूर्ख बनाने के लिए उपयोग किया करते हैं। इनको ये भी पता नही होता है कि मानवता के गुणों का बीज "वेद" से प्राप्त होता है। 



मानव और मानवता की पात्रता
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भीतर जिसके मानव होने का भाव होगा, वेद ज्ञान और वेद संस्कार होगा वही 'मानव' कहे जाने का पात्र होता है, वही मानवता का सारथी होता है, वही ईश्वर का सबसे प्रिय संतान होता है। क्योंकि ईश्वर ने केवल मानव बनाया है ....किसी को हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन नही। भाई ! मैं तो ईश्वर की ही मानूँगा... आखिर में मुझे उसी के पास ही तो जाना है और जाकर बताना है कि उसकी बनाई दुनिया बहुत सुंदर है, उस सुंदरता को बढ़ाने के लिए मैंने उसके बताये वेदानुकूल मानव गुणों को धारण किया और उसी अनुरूप संसार की सेवा करी, और उसी की भक्ति।





 


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