गुरु
कैसे हुई गुरु की उत्पत्ति ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCnFbaWpoxelQn17Xwj61UecJ931k9W6582dDKvqnMEkQEMf_IL9a8NjXtfA0q4Yff_wlLaJ3c-tE9HEr9PFIxr3obe8R4VAkKbut4LfjpfaxUQrog8cowJ4GvtVvgCOMEZqszj0mEOPI/)
एक बार देवर्षि नारद बैकुंठ में पहुंचे तो उन्होंने वहां भगवान को उदास पाया। महर्षि नारद ने भगवान से इसका कारण पूछा तो भगवान ने कहा कि मैंने ये सृष्टि बनाई। पशु-पक्षी, कीड़े-मकौड़े, जानवर, पेड़-पौधे आदि सभी कुछ बनाए। लेकिन जब से मैंने मनुष्य को बनाया है तब से ही मैं परेशान हो गया हूं।
बाकी जीव जंतु कभी कोई मांग नहीं करते लेकिन मनुष्य है कि इसकी मांगें पूरी ही नहीं होती। रोजाना मेरे द्वार पर आ जाता है और नई-नई चीजों की मांग करता है। इसलिए मैं परेशान हूं। तब नारद जी ने सुझाव दिया कि भगवान एक उपाय हो सकता है। आपको मनुष्य हमेशा बाहर की चीजों में ढूंढने की कोशिश करता है, आप मनुष्य के अंदर ही छिपकर बैठ जाएं। मनुष्य कभी अपने अंदर झांकने का प्रयास नहीं करेगा और इसलिए आपको ढूंढ भी नहीं पाएगा।
भगवान ने कहा सुझाव तो ठीक है, लेकिन इसमें एक समस्या है। मनुष्य अगर मुझे ढूंढ ही नहीं पाएगा तो वह हमेशा आनंद से वंचित हो जाएगा। मनुष्य मुझे प्यारा है। मैं नहीं चाहता कि ये दुखी रहे। इस पर महर्षि नारद ने सुझाव दिया कि भगवन फिर तो आप स्वयं सतगुरु बनकर मनुष्य की परेशानियों का समाधान कर सकते हैं। भगवान ये सुझाव सुनकर अति प्रसन्न हुए। इस तरह मनुष्य की परेशानियों को दूर करने के लिए भगवान ने गुरु की उत्पत्ति का मार्ग निकाला।