भाव

ॐ श्री परमात्मने नमः                                                       


प्रश्‍न‒अन्तकालमें नामजप सुननेसे सद्‌गति होती है या कल्याण हो जाता है या ऊँचे लोकोंमें जाता है ?


स्वामीजी‒जैसा अपना भाव होगा, उसके अनुसार गति होगी ।


प्रश्‍न‒स्वामीजी, आपने कहा कि विनाशीके आश्रयसे अविनाशी (परमात्मा)-की प्राप्ति नहीं होती । अविनाशीका आश्रय ही अविनाशीकी प्राप्ति कराता है । परन्तु जब कीर्तन करते हैं, तब वाणी, राग-रागिनी, ताल आदि विनाशी चीजोंका आश्रय लेते ही हैं ?


स्वामीजी‒वाणी आदिकी सहायता ली है, आश्रय नहीं लिया है । ‘नाम’ का आश्रय नहीं लिया है, प्रत्युत ‘नामी’ का आश्रय लिया है ।


प्रश्‍न‒किसीको कीर्तनके समय उबासी आती है तो क्या वह बाधक होती है ?


स्वामीजी‒एक उबासी प्रेमका विकार होती है, वह बाधक नहीं होती । अश्रुपात भी प्रेमका विकार है । निद्रा- आलस्यसे उबासी आये तो वह बाधक है । प्रेमके विकारवाली उबासी लम्बी होती है, जिसमें साधक वायु मुँहसे अधिक खींचता है ।


भक्तमें अश्रुपात, रोमांच आदि होना विकार नहीं हैं; क्योंकि ये भगवान्‌के सम्बन्धसे होते हैं, जड़के सम्बन्धसे नहीं ।


 


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