छंद




मुझको मिलता विष प्यार घुला , जड़ भौतिक कंटक जाल अपार !
मिटता नित वंचित राग भरा, रजनी तम में झर रश्मि निखार !
शशि सुन्दर रूप तरंग विभा , बिखरा तल शीतल राग विकार !
पथ में नव चेतन चंचल सी , किरणें रखती अणु बिंब निहार !!


करुणामय सुन्दर मौन भरा ,प्रिय चंचल रूप असीम महान !
मुख वैभव चंद्र उजास घना , वपु कांत सुशोभित फूल समान !
नव भोर उदार निखार रही , जड़ चेतन सौरभ नित्य जवान !
छवि धाम अलौकिक देख जरा , लघु श्रृंग बँधा रवि है गतिमान !!


सरिता-उर चंचल दोड़ रहा , प्रिय प्रेम अलौकिक संग विचार !
पद-चाप सुधा-रस में घुलती , तन कोमल वेग धरा अनुसार !
मधु मिश्रित राग सुहाग भरा, मृदु अंक पराग विहाग निहार !
बन विद्युत मेघ धरातल में , हँस बाँध रही सपने अभिसार !!


ढलते सब ताप हलाहल में, अणु डोल रहे नित विह्वल राग !
क्षण डोर बँधे तन प्राण त्वरा , उर पाल दिवा रजनी अनुराग !
सब जीवित भौतिक तत्व यहाँ , ममता मन मंदिर दीप विराग !
गुरु देव प्रभा अविराम खिले , तम भेद उजास निहार चिराग !!


 


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