यज्ञ के विषय में महर्षि के विचार
यज्ञ के विषय में महर्षि के विचार
"यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म" शतपथ ब्राह्मण
यज्ञ से तीन हित सिद्ध होते हैं।
(1) आध्यात्मिक - संयम, एकमात्र परमेश्वर की उपासना तथा कर्मों का अनुष्ठान वेदों के अनुसार।
(2) आधिदैविक- अग्नि, वायु, जल, सूर्य, पृथिवी आदि पदार्थों के ज्ञान से शिल्प विद्या की सिद्धि, शिल्प कार्य, यंत्र कला, विमान तथा अन्यान्य यंत्रों का निर्माण, अग्नि, वायु, जल की शुद्धि।
(3) आधियाज्ञिक :- परोपकार, विद्या दान, सेवा, औषध, वनस्पत्यादि द्वारा रोग दुःख, दारिद्र्य का निवारण, धन, अन्न, ऐश्वर्य की वृद्धि व समस्त सुखों का विस्तार।