यज्ञ

हमेशा से सत्य के स्थान पर असत्य परोसा जाता है।                                                 


यज्ञ के नाम पर आज भी पाखण्ड चल रहा है। लाखो पोगा पण्डित ब्राहमण नाम धारी ये सब क्रिया करा रहे थे। और करा रहे हैं। ईश्वर के नाम पर भी इसी तरह का पाखंड चल रहा है।
सिर्फ वैदिक सिद्धांत को मानने वाले ही ईश्वर व यज्ञ का ठीक स्वरूप समझते है। यज्ञ एक नित्य कर्तव्य कर्म है। लोग उसमें भी अपनी इच्छा पूर्ती करना चाहते हैं। कुछ लोग मुझे मिले बोले में तो नित्य यज्ञ करता हूँ फिर यह दुर्घटना मेरे साथ क्यो हुई मेने कहा उस दुर्घटना से यज्ञ का क्या सम्बन्ध जैसे हमें जीने के लिए स्वास चाहिए उसे शुद्ध करने के लिए नित्य यज्ञ हैं। अब कोई कहे कि इससे तो सारे शत्रु मारे जाएंगे व्यापार में लाभ ही लाभ होगा तो यह यज्ञ ने नाम पर अंधविश्वास है। इससे ऊपर उठो और सत्य असत्य को पहचानो फिर सत्य को ग्रहण करने का प्रयास करो


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