वृक्ष

                                                                                                                   
आज लोगों की स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग सुविधा तो बहुत चाहते हैं, परंतु उसके लिए मेहनत नहीं करना चाहते। सुख तो भोगना चाहते हैं, परंतु उसके लिए परिश्रम करना नहीं चाहते। अधिकार तो चाहते हैं, कर्तव्य का ध्यान नहीं रखते। 
अब जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी तो लोग अपनी कार स्कूटर रखने के लिए अथवा बैठने के लिए वृक्षों की छांव ढूंढेंगे। अर्थात वृक्षों की छांव का लाभ तो लेना चाहते हैं, परंतु वृक्ष लगाना नहीं चाहते। क्योंकि उसमें कष्ट होता है। 
     संसार में ईश्वर का यह नियम है कि यदि आप कर्म नहीं करेंगे, तो फल नहीं मिलेगा।  यदि फल चाहते हैं तो कर्म करना ही पड़ेगा. आपके बड़े वृद्ध लोगों ने, अर्थात पूर्वजों ने अनेक वृक्ष लगाए, जिनकी मेहनत का परिणाम, आज आपको मिल रहा है। उनके लगाए वृक्षों की छांव का आप लाभ ले रहे हैं। तो क्या आप यह नहीं चाहते कि आपके बच्चे और पोते भी इन वृक्षों की छांव का लाभ लेवें? तो उनके लिए वृक्ष कौन लगाएगा? आप ही का यह कर्तव्य है। जैसे आपके पिता और दादा जी ने आपके लिए वृक्ष लगाए, ऐसे ही आप अपने बेटे और पोतों के लिए वृक्ष लगाएं, और सब मिलकर के इन वृक्षों की छांव का लाभ लेवें।
 - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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