वो पथ क्या

वो पथ क्या पथिक कुशलता क्या, जिस पथ में बिखरे शूल न हों ।
नाविक की धैर्य कुशलता क्या, जब धाराएँ प्रतिकूल न हों ।।
जो भरा नहीं है भावों से,  जिसमें बहती रसधार नहीं ।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥


          महापुरुष तो वे ही होते हैं जो समाज को संस्कारित करने और देश के कल्याण के लिए जन्म से लेकर मरण पर्यन्त अनेक विपरीत परिस्थितियों में भी निर्भय होकर डटकर मुकाबला किया करते हैं ! संसार की अनुकूल धारा में और भीड़ में तो कोई भी भेड़ चाल की भांति बह जाता है धारा जहाँ भी उसे ले जाये वह बिना सोचे समझे बहता ही चला जाता है, इसके लिए उसे कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता लेकिन सफल नाविक की परीक्षा तो तभी होती है जब वह उल्टी धारा में पुरुषार्थ और प्रयत्न से, अनेक कष्टों को सहते हुए, ज़हर और अपमान के प्याले पीते हुए धारा की दशा और दिशा ही बदल कर रख दे ! 


         सबसे पहले देवभाषा, "स्वदेश" और "स्वतंत्रता" की अलख जगाने वाले महर्षि देव दयानंद सरस्वती को हम कैसे भूल सकते हैं ? उन्होंने अंग्रेजों के शासन काल में ज़हर के प्याले पीकर, विपरीत परिस्थितियों में भी स्वदेश और स्वतंत्रता का नारा बुलंद किया, देश में व्याप्त अनेकों पाखंडों, अंधविश्वास, कुरीतियों, कुरिवाजों, गुरुडम, मूर्ति पूजा के सामने अकेले में ही साहस और धैर्य को रखते हुए लड़े ! अपने हों अथवा विधर्मी हों, जितना अपमान और कष्ट देव दयानन्द को उनके द्वारा झेलने पड़े थे शायद और किसी महापुरुष ने नहीं सहे होंगे !फिर भी उन्होंने एक योद्धा की भांति अनेकों शास्त्रार्थों को करते हुए, सत्य-असत्य का विवेचन करते कराते हुए, पत्थरों और सांपों को अपने गले लगाते हुए, उन्होंने अपने प्राचीन सत्य सनातन वैदिक धर्म की पताका को विश्व भर में फहराई, वे कभी भी विचलित नहीं हुए थे ! एक ओर दुनिया सारी थी दूसरी ओर स्वामी दयानंद अकेला खड़ा था ! आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष, दशमी को उनका जन्म दिन है सन १८२४ के फरवरी माह की १२ तिथि को उनका जन्म गुजरात के मोरवी राज्य के टंकारा ग्राम में हुआ था ।


 


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