विज्ञानं और सनातन धर्म

आज के समय में परम् पिता परमेश्वर को एक आधुनिक  भौतिक वैज्ञानिक , आधुनिक रसायन विज्ञान , महृषि ब्रह्म जी , महृषि महादेव शिवजी , महृषि वेद व्यास , महृषि कणाद, महृषि ऐतरेय महिदास जिन्होंने सृस्टि कैसे बनी उसके लिए ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ लिखा , महृषि भारद्वाज, महृषि शुश्रुत , महृषि दयानन्द जी सरस्वती के ग्रन्थ और  महाभारत  और वर्तमान के  आचार्य अग्निवर्त्त  नैष्ठिक जी का वेद विज्ञान -अलोक (ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ का हिंदी  भाष्य )  इन सभी को पढ़ा है वह इन ग्रंथो से परम् पिता परमेश्वर के कार्य करने की विधि को जानेगा और कार्यविधि के आधार पर  परम् पिता परमेश्वर को जानेगा , इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है , आधुनिक विज्ञान को समझने के लिए   केवल महृषि दयानन्द जी सरस्वती के ग्रन्थ के आधार पर परम् पिता की कार्य विधि नहीं जानी जा सकती है । यदि कोई कहता है की स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने पूरी खोज कर दी थी , तो उस आधार पर आज तक सुई क्यों नहीं बनी , क्यों आर्य विद्वान् ६५ -७० वर्ष की आयु में हार्ट अटैक से मृत्यु हो रही है । वो तो उपरोक्त सभी ऋषियों को पढ़ना ही होगा ।  इसके अलावा उपरोक्त ग्रंथो के अलावा  कोई कहता है की परम् पिता परमेश्वर को जनता हु , वह असत्य कह रहा है , एक बात जरूर हो सकती है वह परम् पिता परमेश्वर को मानता हो । मानना अलग बात है जानना अलग बात हो , जो जानता है उसको कोई दिग्भर्मित नहीं कर सकता है , और जो केवल मानता है उसको तो कोई भी  दिग्भर्मित कर सकता है । सत्यार्थ पढ़कर सभी मानवीकृत मतों की पोल जरूर पता चल जाएगी , और सत्य का पता चल जायेगा , परन्तु नया अविष्कार नहीं हो पायेगा । यहाँ एक बात जरूर है की महाभारत में जो मिलावट की हुई है उसको भी भली भांति जनता हो , अभी महाभारत में १ लाख से ऊपर श्लोक है जबकि महृषि वेद व्यास कृत केवल ४००० है उनके शिष्यों के ६००० है बाकि सब मिलावट है ।
आओ ईश्वर को जानने का क्रम पर चलते है ।


1 -चेतन  क्या है ? 
2 -जड़ क्या है ? 
3-न्यूटन  के गति का सिद्धांत ?
4- इलेक्ट्रान , प्रोटोन , न्यूट्रॉन क्या है ? इनके व्यवहार क्या है ?
5-पृथ्वी कितनी में एवं  किस  गति से घूम रही है पृथ्वी   का वजन कितना ?
६- सूर्य और पृथ्वी में क्या सम्बन्ध है ?
७-विद्या ,काल , बल ,ऊर्जा ,विधुत आवेश ,द्रवमान , ध्वनि , रंग की परिभाषा, पंचतत्व  क्या है ।
८-रासायनिक  टेबल 
 
सभी प्रश्नो का उत्तर -


१- चेतन के गुण-    ज्ञान -प्रयत्न, सुख-दुख, इच्छा -द्वेष जिसमे ये गुण है वही चेतन  है ।


२-जड़ क्या है - अब हम इस बात पर विचार करते हैं कि जड़ (प्रकृति) किसे कहते हैं? इसका स्वरूप क्या है? इस
विषय में महादेव शिव अपनी धर्मपत्नी भगवती उमा से कहते हैं-


"नित्यमेकमणु व्यापि क्रियाहीनमहेतुकम। अग्राह्यमिन्द्रियैः सवरेतदव्यक्त लक्षणम्।।।
अव्यक्तं प्रकृतिर्मूलं प्रधानं योनिरव्ययम् । अव्यक्तस्यैव नामानि शब्दैः पर्यायवाचकैः ।।"


(महाभारत अनुशासन पर्व-दानधर्मपर्व १४५ वां अध्याय, पृष्ठ संख्या
६०१४)


उधर महर्षि ब्रह्मा कहते हैं-
"तमो व्यक्तं शिवं थाम रजो योनिः सनातनः। प्रकृतिर्विकारः प्रलयः प्रधानं प्रभवाप्ययौ ।।२३।।


अनुद्रिक्तमनूनं वाप्यकम्पमचलं ध्रुवम् । सदसच्चव तत् सर्वमव्यक्तं त्रिगुणं स्मृतम्।।
जेयानि नामधेयानि नरैरध्यात्मचिन्तकः ।।२४ ।।" (महाभारत आश्वमधिक पर्व अनुगीता पर्व अध्याय-३९)


इन श्लोकों से प्रकृति रूप पदार्थ के निम्न गुणों का प्रकाश होता है-
(१) नित्य- यह पदार्थ सदैव विद्यमान रहता है ,अजन्मा , गतिहीन , पूर्ण अंधकार , इससे अंधकार कुछ भी नहीं हो सकता , जैसे अमाशय की काली रात हो ,अँधेरे कमरे में एक बॉक्स रखा हो हम उसके अंदर बैठकर आंख खोलकर जैसा दिखेगा वही एकरस जड़ ( प्रकर्ति ) है । आज  जो हमें दिख रहा है और जो नहीं दिख रहा वह सब इसी जड़ से बना है ।
इसका उपयोग केवल परम् पिता परमेश्वर कर सकता है , इसी से परम् पिता परमेश्वर ने पंचतत्व -आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी बनाये  है ।
 


 किसी भी जड़ वास्तु के टुकड़े करते जाये तो आधुनिक विज्ञान के अनुसार सबसे आखिर में इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन मिलते है । जिसमे न्यूट्रॉन । प्रोटॉन केंद्र में रहते है और इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन के बहार की कक्षा में गति कर रहा है  


ईश्वर का पहला प्रमाण -न्यूटन के प्रथम सिद्धांत है जब तक जड़ वस्तु में बाहर से बल ना लगाए जाए तब तक जड़ वस्तु में कोई गति नहीं हो सकती इसी सिद्धांत पर इलेक्ट्रॉन को कौन गति दे रहा है वैदिक सिद्धांत में यह गति परमपिता परमेश्वर दे रहा है आज तक आधुनिक विज्ञान इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन को नहीं देखा है जबकि इसी से दुनिया बनी है जब तक ईश्वर को जानने के लिए पदार्थ को जानना जरूरी है 


आधुनिक विज्ञान के अनुसार पृथ्वी का व्यास  12742 किलोमीटर है और वजन 590000000000000000000 किलोग्राम है । पृथ्वी जड़ है वह  अपने अक्ष पर इसकी गति 1670 किलोमीटर प्रति घंटे से घूम रही है  है , और  पृथ्वी, सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगा रही है उसकी गति 110000 किलोमीटर प्रति  घंटे  है । सूर्य  अपने अक्ष पर भी घूम रहा है और सूर्य आकाशगंगा के चारों तरफ 700000 किलोमीटर प्रति घंटे  की गति से अपने पूरे उपग्रह  के साथ गति कर रहा है। स्टीफन हॉकिंग्स के अनुसार 10 की घात 512 सूर्य है और हर सूर्य के साथ अपना गृहमंडल है। जो अपने सभी  गृह  गति से घूम रहे हैं ।जब ब्रह्मांड के बारे में ध्यान लगाओगे तो आपको कोई व्यक्ति  नजर  नहीं आएगा जो इस ब्रह्माण्ड को गति दे रहा है । यह कार्य सर्वशक्तिमान, निराकार, परमात्मा के अलावा कोई नहीं कर पायेगा । 


७-विद्या ,काल , बल ,  ध्वनि , द्रव्यमान , ऊर्जा ,विधुत आवेश , रंग की परिभाषा, पंचतत्व  क्या है ।


विद्या - बुद्धि द्वारा तर्क ( अनुसन्धान ) से ज्यों का त्यों जानना एवं जिससे समस्त मानव ेव जीव जन्तुओ के जीवन को पूर्णकालिक सुख मिल सके वही विद्या है ।  


काल की परिभाषा- सृष्टि के प्रारम्भ  में  जब परमपिता परमेश्वर सृष्टि रचने का मन बनाता है तब वह सबसे पहले प्रकृति के तीन गुणों में से केवल 2 गुण सत और रज एक्टिव करता है उसी को कॉल कहते हैं तीसरा गुण जब एक्टिव होता है तब वह सृष्टि का पहला पदार्थ महत्व कहलाता है वेद में काल को ईश्वर पुत्र कहा गया है ।


बल की परिभाषा- किसी पदार्थ वह गुण जो उस पदार्थ को  धारण, पोषण करता है, उसी को बल कहते हैं । 
यदि आधुनिक विज्ञान  बल की परिभाषा जान ले तो उससे ही ईश्वर सिद्ध हो जायेगा , जैसे हमारे शरीर अरबो कोशिका से बना है तो वे कोशिका  केवल परमात्मा के बल पर आपस में जुडी है ।  यदि परमात्मा का बल हट जाये तो तुरंत पूरा शरीर मूल जड़ में चला जायेगा ।



ध्वनि  की परिभाषा-जब दो छंद रश्मि आपस में टकराती हैं उससे ध्वनि उत्पन्न होती है । 


द्रव्यमान - मूल जड़ एक रस होती है उसमे कोई द्रव्यमान नहीं होता जब मूल जड़ के तीन गुण एक्टिव होते है उसकी साम्यवस्था भंग  होती है और जो तीसरा गुण तम  है इसी  की वजह से जड़ में द्रव्यमान ही जाता है , इसमें पृथ्वी  के आकर्षण का प्रभाव भी रहता है इन दोनों  को मिलकर ही द्रव्यमान कहते है ।  


विधुत ( अग्नि )  आवेश की परिभाषा - विधुत एक पदार्थ है और उसमे धनात्मक चार्ज , ऋणात्मक चार्ज उसके  गुण है ,  ये गुण उसमे प्राण, अपान छंद,से आते है । 


रंग (कलर) की परिभाषा - आधुनिक विज्ञान मानता है की पदार्थ जो रंग सोख नहीं पता उसको वापिस कर देता है जबकि ऐसा नहीं है , हर छंदो ( वेद मंत्रो ) से अलग अलग रंग उत्पन्न होता है , जैसे गायत्री छंद से- श्वेत , अनुस्टुप छंद  से -लाल मिश्रित भूरा ,उष्णिक-सारंग रंग बिरंगे ,पंक्ति छंद - नीला वर्ण ,बृहतीसे -काला, जगती से -गौर वर्ण   त्रिस्टुप छंद - लाल रंग होता है , आदि । 


ऊर्जा की परिभाषा - बल एवं प्राण से युक्त पदार्थ ही ऊर्जा कहलाती है ।



पंचतत्व -  पंचतत्व का निर्माण  परम् पिता परमेश्वर करता है - -आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ।


 हर पदार्थ के पंचतत्व अलग अलग होते है - 


आकाश -जड़ ( मूल प्रकृति ) में ॐ छंद रश्मि से विकार होकर  -महत्त  -अहंकार -मन , फिर  प्राथमिक छंद रश्मिया ,प्राथमिक प्राण रश्मिया , ऋतू रश्मिया , मास रश्मिया द्वारा  आकाश तत्व बनता है ।


वायु - आकाश का  संपीडन जब छंद रश्मियों से किया जाता  है , उसको वायु तत्व कहते है । 


अग्नि - वायु का संपीडन जब होता है तब अग्नि,  मूल कण क्वान्टाज़ कहलाता है , यह ३६० वेद छंदो से मिलकर बना है । आधुनिक विज्ञान के अनुसार फोटोन   मूल कण क्वान्टाज़ यही तत्व है । अग्नि  के एक अणु में  36० प्राण व् छंद रश्मिया होती है 


जल - जब अग्नि को संपीडन किया जाता है तब जल बनता है ,जल के एक अणु में  ४८० से ६०० तक  प्राण व् छंद रश्मिया होती है । यह पानी नहीं है । आधुनिक विज्ञान में इसको एटम आयन कहते है ।


 पृथ्वी - जब जल को संपीडन किया जाता है तो पृथ्वी तत्व बनता है , आधुनिक विज्ञान की भाषा में इसको मॉलिक्यूल कहते है । यह मिटटी नहीं है और ये रस रूप होता है । पृथ्वी  के एक अणु में  ६०० से अधिक  प्राण व् छंद रश्मिया होती है ।


रासायनिक टेबल - जो आधुनिक वैज्ञानिको के ११० तत्व की  रासायनिक टेबल है वह तुक्के से मिलायी गयी है क्योकि इनका सिद्धांत २,८,८,१८,१८  सभी ११० तत्त्व पर लागु नहीं होता है , और विश्व के विनाश का कारण भी यही है ।   


आओ सुव्यस्थित  सृस्टि निर्माण के लिए ऋषिकृत हिंदी वेद भाष्य एवं वेद विज्ञान अलोक पढ़े । 


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