वेद से जुड़े बड़े सवालों के जवाब

जगत मे बार-बार  यह प्रश्न उठाया जाता है कि -
1- वेद में ज्ञान किसने, कैसे दिया ?
2- वेद किसने लिखे ? 
3-बिना पेन, इंक , कागज के कैसे लिखे ? 
 आज हम इन प्रश्नों के  वैज्ञानिक तरीके से उत्तर दे रहे हैं । 
1- वेद में ज्ञान किसने, कैसे दिया ?
उत्तर - वेद का ज्ञान परमपिता परमेश्वर ने दिया ।  
कैसे दिया ?  
उत्तर - वेद मंत्रों की   परा वाणी एवं पश्यन्ति वाणी के स्पंदन से  ईश्वर मूल प्रकृति में विकार करके यह सृष्टि बनाता है और आज भी ईश्वर उन्ही मंत्रों की परा वाणी एवं पश्यन्ति वाणी के स्पंदन से  ब्रह्मांड में कार्य कर रहा है ।
 ब्रह्मांड में जो स्पंदन वेद मंत्रों की पश्यान्ति वाणी में हो रहे हैं उनको चार योगीयो अग्नि, वायु, आदित्य , अंगिरा ने सृस्टि के आरम्भ (आज से 1960853120 वर्ष  पूर्व) में पश्यन्ति वाणी में ही  ग्रहण किया था ।  इन चार योगियो ने सबसे पहले चारों वेदों का ज्ञान ऋषि  ब्रह्म जी को  दिया था।  


2- वेद किसने लिखे ? 
उत्तर -वेद ज्ञान की परंपरा श्रुति में शुरू हुई थी  और महाभारत के समय ऋषि वेदव्यास जी ने चारो वेदो को  लिपिबद्ध किया था। यह ज्ञान वेद व्यास जी का नहीं है, इनको ये ज्ञान  परंपरा से मिला था इन्होंने केवल इस को लिपिबद्ध किया है । 


नोट -आज भी कोई परम योगी इन वेद मंत्रों के स्पंदनो की पश्यान्ति वाणी को ग्रहण कर सकता है ।


अब आपके प्रश्न होंगे कि -
1-परा , पश्यन्ति वाणी  क्या होती है ? 2-प्रकृति क्या है ?
3- सृस्टि किसे कहते है ?
4- चेतन के गुण
5- जड़ के गुण
हम इनके आपको क्रमश  उत्तर देते हैं ।


नोट-यहां ध्यान देने वाली बात है कि जिस प्रकार हम कार्य करते हैं वही कार्य शैली परमपिता परमेश्वर की है ।


 1-परा , पश्यन्ति वाणी  क्या होती है ?
उत्तर - जो हम सुनते हैं या स्पंदन समझते हैं उसको वाणी कहते हैं । वाणी के चार प्रकार होते हैं परा, पश्यन्ती ,मध्यमा और बैखरी (आवाज जो हम सुनते है ) ।
आत्मा जिस वाणी को सुनती है या स्पंदन समझती है उसको परा वाणी कहते हैं ।


जिस वाणी को मन सुनता है या स्पंदन समझता है उसको पश्यन्ती वाणी कहते हैं।


जिस वाणी को बुद्धि सुनती है या स्पंदन समझती है उसको मध्यमा वाणी कहते हैं । जो वाणी कान का पर्दा सुनता  है या स्पंदन समझता है उसको बैखरी वाणी  कहते हैं। परा, पश्यन्ती ,मध्यमा और बैखरी वाणी के  बाद ही स्थूल कार्य दिखाई देता है 
जब हम खुद कोई कार्य करते हैं तो सबसे पहले परा, पश्यन्ती वाणी में चिंतन होकर ही स्थूल कार्य करते है । यदि हमको किसी दूसरे से कोई कार्य करवाना है, तब हमको चारों वाणी परा, पश्यन्ती ,मध्यमा और बैखरी ( स्थूल आवाज ) का उपयोग करना पड़ता है ।
परमात्मा अपने सभी कार्य खुद करता है क्योकि वह   सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ है, इसलिये वह अपने सभी कार्य केवल परा, पश्यन्ती वाणी के में ही कर देता हैं ,परा, पश्यन्ती के बाद  परमात्मा के स्थूल कार्य हमे  दिखाई देते है  । ये  परा ,पश्यन्ति वाणी ही वेद मंत्र है, इन्हीं परा, पश्यन्ति वाणी को  चार योगियों ने सुना था।
   
2-प्रकृति क्या है ? 
उत्तर -अमावस्या की काली रात हो और एक कमरे में चारों तरफ से खिड़की , दरवाजे बंद होकर उन पर काले परदे लगे हो, फिर उस कमरे में एक संदूक हो ,संदूक भी  पूरी तरह बंद हो  फिर हम उस संदूक के अंदर बैठ जाएं और जब आंख खोल कर देखें जो महसूस हो उसको प्रकृति कहते हैं । 
प्रकृति पूर्ण अन्धकार, इससे अंधकार कुछ नही हो सकता , एकरस एवं गतिहीन होती है । इसका उपयोग केवल परमपिता परमेश्वर कर सकता है। जीव इसका उपयोग तभी कर सकता है , जब परमपिता परमेश्वर  इससे पंचतत्व आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी का निर्माण करता है ।  प्रकृति जड़ है ।


 3-सृष्टि क्या है ? 
उत्तर  -जब कोई चेतन मूल वस्तु को  विकृत करता या  विकार करता है  तभी उसको सृष्टि (निर्माण) कहते हैं । परमपिता परमेश्वर मूल प्रकृति में विकार करके ही यह सृष्टि का निर्माण करता है , मूल प्रकृति में ही विकार करके  सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, जीव के शरीर   और जो कुछ भी दिखाई दे रहा है या नहीं दिखाई दे रहा है , परम पिता परमेश्वर ने ही बनाया है। प्रलय में यह सृष्टि मूल प्रकृति में ही हो जाती है। 
4-  चेतन के गुण -
उत्तर - जिनमे ये गुण ज्ञान ,प्रयत्न , सुख,दुःख, इच्छा , द्वेष हो वही चेतन है ।
5-  जड़ के गुण ?
 उत्तर-  जिसमें चेतन के गुण ना हो वही जड़ है।
नोट -गुण और गुणी साथ साथ रहते हैं ये अलग नहीं हो सकते । जैसे गुणी हो गया  गुड और मीठा हो गया उसका गुण ।  अब यह नहीं हो सकता मीठा रह जाए और गुड चला जाए, गुड ( गुणी ) और मीठा( गुण ) साथ साथ ही रहेंगे ।
उपरोक्त लेख एक बार पढ़ने में समझ में नहीं आएगा इसको आप को ध्यान लगाकर शांत मन से  10 बार पढ़ना पड़ेगा तभी समझ मे आएगा ।
धन्यवाद 


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