वेद मंत्र

तत्त इन्द्रियं परमं पराचैरधारयन्त कवयः पुरेदम्।
क्षमेदमन्यद्दिव्यन्यदस्य समी पृच्यते समनेव केतुः॥ ऋग्वेद १-१०३-१।


हे परमेश्वर, तुम्हारी महिमा सर्वोपरि और अनंत है। आप का सामर्थ्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों हैं। आपके सामर्थ्य के चिन्हों को बुद्धिमान विद्वान जान पाते हैं। पृथ्वी भी ऐसा ही एक चिन्ह है।  सूर्य आदि भी ऐसे ही चिन्ह हैं। इन सब की रचना भला बिना विधाता के और कौन कर सकता है। जिस तरह से सेना का पता उसके ध्वज से होता है, उसी प्रकार परमेश्वर की महिमा का उसके चिन्ह द्वारा पता पड़ता है। 


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