वेद मंत्र
भरामेध्मं कृणवामा हवींषि ते चितयन्तः पर्वणापर्वणा वयं।
जीवातवे प्रतरं साधया धियोऽग्ने सख्ये म रिषामा वयं तव।। ऋग्वेद १-९४-४।।
हे विद्वान गुरु, हम लोग अपने अंदर ज्ञान की अग्नि को प्रज्वलित करके आपको अपनी आत्मा समर्पित करते हैं, कि हमें एक-एक कदम करके ज्ञानी बनाओ। हम अपनी बुद्धि और ऊर्जा के ईंधन को आपके प्रति लगाते हैं, कि हम कदम दर कदम अपने ज्ञान में वृद्धि कर पाएं। हमें प्रेरणा दो, हमारा जीवन दीर्घ हो। हम लोग आपके मित्रपन में किसी प्रकार का दुख ना उठाएं।