वैशेषिक दर्शन के कर्ता महामुनि कणाद ने धर्म का लक्षण बताते हुए कहा है

वैशेषिक दर्शन के कर्ता महामुनि कणाद ने धर्म का लक्षण बताते हुए कहा है-


यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:


      अर्थात जिससे अभ्युदय (लोकोन्नति) और निश्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि होती हैं, वह धर्म हैं। जबकि हिंदू मुस्लिम ईसाई जैन बौद्ध आदि मजहबों का मतलब धर्म के बिलकुल ही विपरीत है, मजहब किसी एक पीर-पैगम्बर के द्वारा स्थापित और उसी के सिद्धांतों की मान्यता को लेकर बनाए जाते हैं जिसका प्रमुख मकसद जनकल्याण नहीं बल्कि रक्तपात, अन्धविश्वास, बुद्धि के विपरीत किये जाने वाले पाखंडों आदि का किसी भी प्रकार का प्रोपोगंडा कर अपने मजहब में लोगों की संख्या बढ़ाना होता है ताकि वे उस समुदाय के अपने सिद्धांतों के हिसाब से भेड़ों की तरह हाँक हांक सकें.....! एक वैदिक धर्म ही उपरोक्त धर्म की परिभाषा पर खरा उतरता है जो हमें धैर्य, क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध आदि के बारे में बताता है। पशुबलि, पाषाण पूजा, शिवलिंग पूजा धर्म नहीं अधर्म है।


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