सुख और दुःख की समझ
जीवन में सुख भी आते हैं, दुख भी आते हैं। सुख आने पर व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है, उछलता कूदता नाचता है । और जब दुख आता है, तो दहाड़ें मार-मार कर रोता भी है। ये सुख दुख भी अनेक स्तर के होते हैं।
पढ़ाई-लिखाई करने में, धन कमाने में, परिवार के पालन में, देश विदेश की यात्रा आदि कार्यों में अनेक प्रकार के कष्ट आते हैं। व्यक्ति इन सारे कष्टों को अच्छी प्रकार से सह लेता है , क्योंकि उसके सामने कुछ लक्ष्य होता है। अपनी उन्नति, परिवार का पालन करना, समाज को सुख देना, धर्म की रक्षा करना, देश की रक्षा करना इत्यादि कारणों से वह इन सारे दुखों को सह लेता है।
परंतु कभी-कभी जब जीवन में उसे धोखा खाना पड़ता है, विश्वासघात का सामना करना पड़ता है, और वह भी कोई अपना निकट का व्यक्ति ही उसे धोखा दे, तब जो उसको दुख होता है, उसे सहन करना बहुत कठिन पड़ता है।
कोई बात नहीं। यह संसार है। यहाँ सब कुछ होता है। अपने पराए सब लोग सुख भी देते हैं, दुख भी देते हैं। जब भी कोई अपना निकट का व्यक्ति दुख देवे , धोखा देवे, विश्वासघात करे, तब भी आप विचलित न होवें, यही आपकी वीरता है।
उस समय कैसे उस दुख को सहन करें? कैसे धैर्य रखें? इस प्रश्न का उत्तर है , कि तब ऐसा सोचें, यह संसार अनित्य है। यहां सुख आता है, वह चला जाता है। दुख आता है, वह भी चला जाएगा।
इस प्रकार से सोचने से वह दुख आपको हल्का लगेगा।
और फिर भी वह दुख पूरा दूर न हो, तो उस दुख को, उस अन्याय को ईश्वर के न्याय पर, आप छोड़ देवें। और अपने मन में तीन शब्द बोलें, "ईश्वर न्याय करेगा.
ऐसा सोचने से आपका दुख हल्का हो जाएगा। आपका मन बुद्धि विचलित नहीं होगा । आप अपना जीवन ठीक प्रकार से चला पाएंगे। - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक