सेवा का सम्मान
बहुत से लोगों के जीवन में प्रायः ऐसा देखने को मिलता है, कि वे दूसरों की सेवा करते हैं, वर्षों तक वे परिवार वालों मित्रों संबंधियों की सेवा करते हैं, बड़ी उत्तम भावना से, श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं। परंतु जिनकी सेवा करते हैं, वे लोग उनकी सेवा का मूल्य ठीक प्रकार से नहीं आँकते, तथा उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
ऐसी स्थिति में उन सेवा करने वालों को बहुत गहरा धक्का लगता है। बहुत निराशा एवं दुख होता है। वर्षों तक सेवा करने के बाद, अब जब कुछ उस सेवा का प्रतिफल मिलने का समय आया, उन्हें सेवा का प्रतिफल मिलना चाहिए था, उस आयु में आकर जब वह प्रतिफल नहीं मिलता, या ठीक प्रकार से नहीं मिलता, सम्मान पूर्वक नहीं मिलता, तो वे बेचारे धीरे-धीरे उदास निराश होकर डिप्रेशन में भी चले जाते हैं।
यह स्थिति बहुत ही अन्याय पूर्ण है। नहीं होनी चाहिये, फिर भी यहाँ होती है।
कहने को तो यह संसार है, इसका नाम भले ही संसार है, लेकिन ऐसी परिस्थितियाँ देख कर यूं लगता है कि इसमें सार कुछ नहीं है। इस संसार में ऐसा क्यों होता है? क्योंकि सब लोगों के संस्कार रुचि बुद्धि पुरुषार्थ भावनाएं एक समान नहीं हैं।
चलो कोई बात नहीं। सब लोग अपनी-अपनी इच्छा और अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार ही काम करते हैं। दूसरों की बुद्धि संस्कार जैसे भी हों, वे जैसा भी करें, आपका उन पर वश नहीं चलता। परंतु आपका आचरण तो आपके अधिकार में है। कम से कम आप तो इस बात को अवश्य ही समझें, कि जिन लोगों ने आपके लिए वर्षों तक तपस्या की, आपकी सेवा की, वे लोग आपसे कुछ प्रतिफल की आशा रखते हैं। आप तो इतना संकल्प अवश्य करें, कि जीवन के अब उस अंतिम पड़ाव में कम से कम आप तो उन्हें निराश नहीं करेंगे। इससे आपमें भी मनुष्यता बनी रहेगी और उनको भी उचित प्रतिफल मिलेगा। उनके जीवन का अंतिम भाग शांतिपूर्ण ढंग से बीतेगा। और यही परंपरा आगे आपके साथ भी चलेगी।