"संसार का भय कैसे मिटे

  संसार का भय कैसे मिटे               


     जैसे किसी मकान में चारों ओर अंधेरा है । कोई कह देता है कि मकान में प्रेत रहते हैं, तो उसमें प्रेत दीखने लग जाते हैं अर्थात उसमें प्रेत होने का वहम हो जाता है । परन्तु किसी साहसी पुरुष के द्वारा मकान के भीतर जाकर प्रकाश कर देने से अँधेरा और प्रेत - दोनों ही मिट जाते हैं।अँधेरे में चलते समय मनुष्य धीरे-धीरे चलता है कि कहीं ठोकर न लग जाय, कहीं गड्ढा न आ जाय। उसको गिरने का और साथ ही बिच्छू, साँप, चोर आदि का भय भी लगा रहता है ।
   परन्तु प्रकाश होते ही ये सब भय मिट जाते हैं। ऐसे ही सर्वत्र परिपूर्ण प्रकाशस्वरूप परमात्मा से विमुख होने पर अन्धकारस्वरूप संसार की स्वतन्त्र सत्ता सर्वत्र दीखने लग जाती है और तरह-तरह के भय सताने लग जाते हैं।
परन्तु वास्तविक बोध होनेपर संसार की स्वतन्त्र सत्ता नहीं रहती और सब भय मिट जाते हैं।
    एक प्रकाशस्वरूप परमात्मा ही शेष रह जाता है । अंधेरेको मिटाने के लिये तो प्रकाश को लाना पड़ता है, परमात्मा को कहीं से लाना नहीं पड़ता।  वह तो सब देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि में ज्यों-का-त्यों  परिपूर्ण है । 
इसलिये संसार से सर्वथा सम्बन्ध -विच्छेद होनेपर उसका अनुभव अपने -आप हो जाता है। 


       


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