परमात्मा को जानने का अद्भुत ग्रन्थ

परमात्मा को जानने का अद्भुत ग्रन्थ-।।आर्याभिविनयः।।


      "।।ओउम्।। वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्। तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय।।" 


       एकेश्वरवाद का पूर्ण दृढ़ता से प्रतिपादन करने बाले वेदोद्धारक महर्षि दयानंद सरस्वती का मानना था कि मनुष्य के सभी दुखों का कारण, उसके द्वारा परमात्मा के गुण, कर्म व स्वभाव को वेदानुसार नहीं समझ पाना है।


       इसी उद्देश्य को लेकर महर्षि ने अपने अनुपम ग्रंथ "आर्याभिविनयः" की रचना की। इस ग्रन्थ की उपक्रमणिका में महर्षि लिखते हैं-- जो नर इस संसार में अत्यंत प्रेम, धर्मात्मता, विद्या, सत्संग, सुविचारिता, निर्वैरता, जितेन्द्रियता, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से परमात्मा का स्वीकार (आश्रय) करता है वही जन अतीव भाग्यशाली है, क्योंकि वह मनुष्य यथार्थ सत्य विद्या से सम्पूर्ण दुःखों से छूटके परमानन्द में परमात्मा की प्राप्ति (परमात्मा के गुण, कर्म, स्वभाव को वेदानुसार भली-भांति जान लेना) रूप जो मोक्ष (अविद्या से मुक्ति) है उसको (सत्य ज्ञान) प्राप्त होता है और दुख सागर (असत्य जनित कष्टों) से छूट जाता है।


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