मनुष्यो की समझ

संसार में लोहे के सिक्के भी होते हैं और सोने के भी। आप जानते ही हैं कि दोनों का मूल्य अलग-अलग है । 
कभी-कभी लोहे का सिक्का हाथ से छूटकर नाली में गिर जाता है। तो व्यक्ति उसे छोड़ देता है। नहीं ढूँढता। नाली में हाथ नहीं मारता।
 परंतु यदि सोने का सिक्का नाली में गिर जाए, तो उसे नहीं छोड़ता। नाली में गिर कर गंदा होने पर भी वह सोने का सिक्का वैसा ही मूल्यवान रहता है। उसका मूल्य कम नहीं होता। सिर्फ इतना ही है कि उसे ढूंढ कर निकाल कर धो लिया जाता है, और उसकी कीमत फिर वही मानी जाती है। कुछ देर के लिए उसमें ऊपरी तौर पर अशुद्धता आ जाती है।
 इसी प्रकार से संसार में, कुछ मनुष्य लोहे के सिक्के के समान होते हैं, जिनके जीवन में गुण कम होते हैं, इसलिये उनका मूल्य भी कम होता है। और कुछ मनुष्य सोने के सिक्के के समान होते हैं, जिनके जीवन में बहुत से उत्तम गुण होते हैं। उनका मूल्य भी अधिक होता है। 
यदि कोई मनुष्य कम गुणवान है और उसमें कुछ 1-2 दोष आ जाएँ, तो समाज के लोग उनकी उपेक्षा कर देते हैं, उन्हें लोहे के सिक्के के समान छोड़ देते हैं। 
परंतु यदि कोई मनुष्य बहुत से गुणों का भंडार है, वह सोने के सिक्के जैसा मूल्यवान है। यदि उसमें किसी समय में, एक आध दोष आ भी जाए, तो समाज के लोग उसे नहीं छोड़ते। बल्कि उसे सावधान करके उसके दोष को छुड़ा देते हैं। सोने के सिक्के के समान उस की शुद्धि कर देते हैं । और वह फिर से वैसा ही मूल्यवान बन जाता है।
अब आप सोचिये, कि इन दोनों में से आप लोहे के सिक्के के समान बनना चाहेंगे? या सोने के सिक्के के समान? निर्णय आपका।


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