मन की पवित्रता

       सभी लोग सुखमय जीवन जीना चाहते हैं। दुखमय जीवन तो कोई भी नहीं चाहता। बहुत प्रयास करने पर भी जीवन उतना सुखमय हो नहीं पाता, जितना कि लोग चाहते हैं। और दुखों से छुटकारा भी उतनी मात्रा में हो नहीं पाता, जितना लोग चाहते हैं। तो क्या करना चाहिए। उसका उपाय ढूँढना चाहिए। कुछ मुख्य उपाय इस प्रकार से हैं ।


       जीवन को सुखदायक बनाने के लिए सबसे पहले मन की पवित्रता होनी आवश्यक है। जिसका मन पवित्र, शुद्ध, अच्छे विचारों वाला है, सेवा परोपकार दया की भावना वाला है, उस व्यक्ति का जीवन सुखमय हो सकता है। इसलिए सबसे पहले अपने मन को पवित्र बनाएँ। 


      परंतु यह मन की पवित्रता तभी संभव है जब आत्मा में ज्ञान हो। वेदो का पवित्र ज्ञान हो। उस पवित्र ज्ञान से, मन की पवित्रता होगी। इसलिए वेदों का स्वाध्याय अध्ययन करें। वेद ऊँची कक्षा की पुस्तकें हैं। सीधी समझ में न आएँ,  तो वेदो के व्याख्यान ग्रंथ पढ़ें। वे व्याख्यान ग्रंथ, जो ऋषियों ने लिखे हैं। जैसे सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, व्यवहारभानुः, आर्योद्देश्यरत्नमाला इत्यादि। ये सब ग्रंथ महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने लिखें हैं।


      अब इसके बाद, जब आप लोगों से मिलते हैं, तब प्रसन्नतापूर्वक मिलें। आपके चेहरे पर मुस्कान होनी चाहिए। इससे आप भी प्रसन्न रहेंगे और दूसरा व्यक्ति भी प्रसन्न हो जाएगा।  परिणामतः दोनों के जीवन में आनंद बढ़ेगा। एक काम और करना चाहिए। वह है, सेवा करना. बड़ों की सेवा करें। गरीबों की रक्षा करें। अनाथों, विकलांग और रोगियों की सहायता करें। ऐसा करने से ईश्वर आपको आपके मन में बहुत उत्तम सुख प्रदान करेगा। बस आपका जीवन सुखमय बन जाएगा।


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