क्या वास्तव में ईश्वर है

क्या वास्तव में ईश्वर है ? है, तो कैसा है ?                                                                               


रचनाकार के बिना सुन्दर रचनायें नहीं हो सकती । नियामक के बिना सुन्दर नियम नहीं हो सकते । प्रबन्धक के बिना सुन्दर प्रबन्ध नहीं हो सकते । गुरु के बिना हम ज्ञानवान नहीं हो सकते । जैसे सोने से अपने आप आभूषण नहीं बन सकता वैसे ही प्रकृति ( Matter ) से अपने आप सृष्टि नहीं बन सकती । ईश्वर सिद्धि में इससे बडे प्रमाण और क्या होगें ? सब पशु पक्षियों,जीव जन्तुओं, पेड पौधों व मनुष्यों को जीने के लिये हवा पानी रोशनी खुराक का इतना सुन्दर प्रबन्ध जिसने किया है वह ईश्वर है । जो परमाणुओं का मिलान करके अरबों खरबों सौर मण्डलों की उत्पत्ति स्थिति व प्रलय करता है वह ईश्वर है ।


१.प्रत्येक बनी वस्तु का बनाने वाला होना चाहिए। मकान का बनाने वाला ईन्जीनियर दिखता है परन्तु सृष्टि का बनाने वाला ईश्वर दिखता नहीं वह अनुभव में आता है।


२.सूर्य समय पर उदय होता है। आज से एक हजार साल बाद सूर्योदय, चन्द्रोदय, ज्वार भाटा, कब होंगे, बताया जा सकता है क्योंकि संसार एक नियम में बंधा चल रहा हैं।H2O से पानी बनता है, गन्धक का तेजाब नहीं। साइंस के समस्त फार्मूले इसी आधार पर स्थित है क्योंकि प्रकृति में नियम हैं।जहां जहां कोई नियम होता है वहां वहां उस नियम का नियामक या नियन्ता अवश्य होना चाहिए। नियम नियन्ता के बिना नहीं चलते।


३. आदि सृष्टि में परमाणु मौजूद थे। उन परमाणुओं को प्रथम गति देने वाला कोई चाहिये। परमाणु स्वयं जड हैं, स्वयं गति नहीं दे सकते।


४.फल पेट भरने के लिए ,दूध बच्चे का पोषण करने के लिए, वनों में बिखरी औषधियां मानव के रोग निवारण के लिए, बच्चे के जन्म के साथ माता के स्तनों में दूध आना...ये समस्त बातें यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि सृष्टि का कोई उद्देश्य है यह अटकल पच्चु नहीं है।इसके पीछे कोई ज्ञानवान सत्ता चाहिए।जड प्रकृति लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकती।


५.आदमी के नाक कान मुख कितने सलीके से बने हैं,तितलियों के पंखों में मखमली रंग भरे हैं, फूलों में क्या सुगन्ध भरी है, उदय व अस्त होते सूरज का दृश्य मानव का मन मोह लेता है। प्रत्येक रचना में एक अनूठापन है। ये अनूठापन रचनाकार के अस्तित्व को सिद्ध करता है।


६.जन्मजात बच्चों के ग्रुपों में अलग थलग रखकर तजुर्बे किये गये। बीस बीस वर्ष के हो जाने पर भी कोई भी भाषा वे न बोल सकते थे। क्योंकि मानव भाषा तो नकल से सीखता है परन्तु भाषा बना नहीं सकता। जैसा मां बोलती है वह भी बोलता है। वातावरण की भाषा बोलता है। आदि सृष्टि में जब भाषा बोलने वाला मानव था ही नहीं तब मानव ने किस भाषा की नकल की थी। उसे वाणी जिसने दी उसका नाम ईश्वर है। आदि सृष्टि में भाषा ईश्वर देता है।


७.संसार में आज ज्ञान है। ज्ञान का ऐसा स्रोत होना चाहिए जहां से रिसकर ये ज्ञान हम तक पहुंचा हो । आदि सृष्टि में तो भाषा भी नहीं थी, ज्ञान ही कहां से आता। यदि ज्ञान आत्मा है तो भाषा उसका शरीर है। ज्ञान, बिना भाषा के, रह नहीं सकता। जिसने भाषा दी उसी ने ज्ञान दिया। ज्ञान के उस आदि स्रोत का नाम ईश्वर है।


८.अष्टांग योग के द्वारा लाखों योगियों ने उस सृष्टिकर्ता ईश्वर का प्रत्यक्ष किया है। प्रत्यक्ष करने का अर्थ केवल आंखों से देखना नहीं होता । ईश्वर के प्रत्यक्ष वा साक्षात्कार का अर्थ है ईश्वर के ज्ञान बल व आनंद की अनुभूति करना।


९.एक बच्चा जन्म से अन्धा पैदा होता है, दूसरा सनेत्र। एक लंगडा दूसरा सही साबुत। एक पागल, दूसरा कुशाग्र बुद्धि।कोई लखपति के घर में पैदा हो गया, कोई कंगाल के घर में। कौन चाहता है कि मैं अंधा, लंगडा, लूला पैदा होता या कंगाल के घर में जन्म लेता? परन्तु ऐसा होता है। मानव पाप कर्मों के करने के पश्चात् कभी उनका फल भोगना नहीं चाहता परन्तु वह शक्तिशाली न्यायधीश ईश्वर उसे सजा भोगने के लिए अन्धे, लंगडे, लूले कलेवरों में जन्म देता है। अमीरों और गरीबों के घर में जन्म देता है। मनुष्य के किये गये अच्छे बुरे कर्म स्वयं जड होने के कारण फल नहीं दे सकते।


१०. प्रकाश की गति 1,86000 मील प्रति सेकिंड है। यदि हम दियासलाई की एक तिल्ली जलायें तो एक सैकिंड बाद उसका प्रकाश 1,86000 मील तक फैल जायेगा।सूर्य हमसे इतना दूर है कि वहां का प्रकाश लगभग नौ मिनट में पहुंचता है। हमारी प्रथ्वी का घेरा 25000 मील का है। यह सूर्य इतना बडा है कि हमारी पृथ्वी जैसी 13 लाख पृथ्वियां इसमें समा जाएं।परन्तु हमारा यह सूर्य कुछ बडा नहीं है।ज्येष्ठा नक्षत्र का व्यास हमारे सूर्य के व्यास से 450 गुणा है। यानि हमारे सूर्य जैसे नौ करोड सूर्य एक ज्येष्ठा नक्षत्र में समा जायेंगे। हमारी आकाश गंगा के पास दूसरी आकाश गंगा में एक अन्य नक्षत्र है "एसडोराडस" । एक लाख छियासी हजार मील प्रति सैकिंड की गति से भागता हुआ प्रकाश 102 वर्ष में वहां से पृथ्वी तक पहुंचता है। उस नक्षत्र का व्यास हमारे सूर्य से 1400 गुणा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे कहीं बडे बडे अनगिनत नक्षत्र आकाश मे हैं। बताओ कि कोई छ: फुटा वा दस फुटा इंसान चाहे कितना ही शक्तिशाली हो ,इन नक्षत्रों, ग्रहों, तारों, धूमकेतुओं का निर्माण कर सकता है? क्या वह वहां पहुंच भी सकता है? जो ये कहते हैं कि ईश्वर साकार है वे यदि संसार की विशालता का विचार करेंगे तो स्पष्ट हो जायेगा कि कोई साकार कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, कितना ही विशाल क्यों न हो, इस विशाल ब्रह्माण्ड का निर्माण नहीं कर सकता। उसे तो सर्वव्यापक होना चाहिए जो वहां तक पहुंच सके और निराकार ही सर्वव्यापक हो सकता है। माता के पेट में बच्चे का निर्माण देखो,पलकों के बाल,आंख की पुतलियां बन रही हैं। क्या कोई साकार बना सकता है ? 


अतः ईश्वर है और वह निराकार है सर्वव्यापक है । वेदादि शास्त्रों में ईश्वर को सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्ता धर्ता हर्ता , कर्मफलप्रदाता व मोक्षप्रदाता बताया गया है । ईश्वर में अनन्त गुण होने से उसके अनन्त नाम हैं, मुख्य नाम ओम् है
यजुर्वेद-40.1, 5, 8,15


 


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