क्या स्वामी दयानंद सरस्वती ईसाई एजेंट था !

क्या स्वामी दयानंद सरस्वती ईसाई एजेंट था !                                                             


स्वामी दयानंद न केवल ईसाई संस्था थियोसोफिकल सोसायटी के अहम सदस्य थे बल्कि थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापकों को पत्र लिखकर उसे भारत में लाने वाले भी दयानंद ही थे ! 1878 से लेकर अपनी मृत्यु 1883 तक स्वामी जी ने ईसाई मिशनरीओं के साथ मिलकर न केवल काम किया ! बल्कि भारत में ईसाई धर्म के फलने फूलने के लिये पैर जमाने में पुरा सहयोग दिया ! आजकल इस संस्था की शाखाएँ 55 देशों में हैं तथा इसके कार्यकर्ताओं की संख्या 35 हजार से अधिक है !


स्वामी दयानंद कब और कैसे थियोसोफिकल सोसायटी के साथ जुड़े आपको विस्तार में बताते हैं !
ये बात है सन 1875 की जब स्वामी जी पंडित कृपाराम शास्त्री से भेंट करने के लिये देहरादून आये हुए थे वहीं पर दयानंद ने ईसाई मिशनरी के दो धर्मप्रचारकों मैडम हैलना पैट्रोवना ब्लैवाटस्की और कर्नल हेनरी स्टील आल्काट के बारे में सुना और उनसे मिलने का फैसला किया !


इसके बाद स्वामी दयानंद देहरादून से सहारनपुर गए वहाँ उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक मैडम ब्लैवाटस्की और कर्नल आल्काट से भेंट की !


स्वामी दयानंद ने उन दोनों के कार्यों की प्रशंसा की और सनातन धर्म के विरुद्ध लड़ाई में उनका सहयोग मांगा
फिर दयानंद इन दोनों के साथ मेरठ गए कुछ दिनों इन दोनों के साथ धर्म प्रचार किया उसके बाद ये दोनों मुम्बई चले गए जहाँ दयानंद ने इनकी सहायता से 10 अप्रैल 1875 में आर्य समाज की स्थापना की और ईसाई मिशनरी के साथ मिलकर काम करने से स्वामी दयानंद को ब्रिटिश सरकार का भी अच्छा खासा समर्थन मिलने लगा !
5-6 महिने दयानंद के साथ धर्म प्रचार करने के बाद कर्नल आल्काट और मैडम ब्लैवाटस्की न्यूयॉर्क के लिये चले गए जहाँ उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की !


13 दिसम्बर 1878 में स्वामी दयानंद ने कर्नल आल्काट और मैडम ब्लैवाटस्की को पत्र लिखकर थियोसोफिकल सोसायटी का प्रधान कार्यालय मुंबई में लाने का निमंत्रण दिया !


स्वामी दयानंद के निमंत्रण पर फरवरी 1879 में सोसाइटी का प्रधान कार्यालय न्यूयार्क से मुम्बई में लाया गया और आर्य समाज कार्यालय का नाम बदल कर "थियोसोफिकल सोसायटी आफॅ द आर्य समाज रखा गया !


1879 में ही स्वामी दयानंद थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य बने जिसका प्रमाण स्वामी दयानंद का हस्ताक्षर किया हुआ वो पत्र है जो मैंने पोस्ट के साथ Attached किया हैं 1879 से लेकर 1886 तक थियोसोफिकल सोसायटी और आर्य समाज ने साथ में काम किया और इतने समय में दयानंद की सहायता से थियोसोफिकल सोसायटी ने लाखों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कर उन्हें ईसाई बनाया ! दयानंद ने थियोसोफिकल सोसायटी के लिये यह कार्य कैसे किया वो भी समझ लिजिये !


दयानन्द सरस्वती के बारे में क्वीन्स कॉलेज के प्राचार्य रुडॉल्फ होर्नले ने यह बात लिखी —
दयानन्द हिंदुओं के मन में यह बात भर देना चाहते हैं कि आज का हिंदूधर्म, वैदिक हिन्दू धर्म के पूर्णतया विपरीत है, और जब यह बात हिन्दुओं के मन में बैठ जायेगी तो वह तुरंत हिंदूधर्म का त्याग कर देंगे और ईसाई बन जायेंगे


तब दयानन्द के लिये उन्हें वैदिक स्थिति में वापस ले जाना सम्भव न होगा, ऐसी स्थिति में हिंदुओं को एक विकल्प की खोज होगी जो उन्हें हिंदू से ईसाई धर्म की ओर ले जायेगी !


स्वामी दयानंद और थियोसोफिकल सोसाइटी इसी प्रकार काम करती थी दयानंद हिन्दुओं के मन मे ये बात भर देते थे कि आज का हिंदूधर्म, वैदिक हिन्दू धर्म के पूर्णतया विपरीत है, और जब यह बात हिन्दुओं के मन में बैठ जाती तो उनमें से कुछ आर्य समाज से जुड़ जाते और बाकीयों को थियोसोफिकल सोसायटी के धर्म प्रचारक ईसाई बना देते ! बदले में स्वामी दयानंद और आर्य समाज को ब्रिटिश सरकार का समर्थन मिलता था !


जिस किसी भी आर्य समाजी को मेरी बातों पर अंश मात्र भी संदेह हो कि दयानंद ईसाई मिशनरी के ऐजेंट( अर्थात दलाल) थे वो कृपया थियोसोफिकल सोसायटी की साइट पर जाकर चेक करें और साथ में उस पत्र की भी जांच कर लें जो थियोसोफिकल सोसायटी की ओर से जारी किया गया जिस पर दयानंद के हस्ताक्षर हैं ! आर्य समाज किस प्रकार थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ा हुआ था !


और यदि इसमें अब भी किसी को किसी प्रकार कोई संदेह हो कि दयानंद थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य थे या नहीं तो वो जाकर दयानंद की 1882 में तैयार कराई वसीयत के बारे में पढे ! स्वामी दयानंद ने अपनी वसीयत जो कि उन्होंने मेरठ में पंजीकृत कराईं थी जिसमें कुल 18 लोग थे जिन्हें दयानंद ने अपनी अंत्येष्टि करने तथा निजी वस्त्र, पुस्तक , मंत्रालय आदि का अधिकार दिया था जिसमें थियोसोफिकल सोसायटी के संस्थापक कर्नल आल्काट और मैडम ब्लैवाटस्की का भी नाम है !


मुझे लगता है अपनी बात को सिद्ध करने के लिये अब मुझे और कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं है दयानंद की ये वसीयत ही ये सिद्ध कर देती है ईसाई मिशनरीयों के साथ दयानंद के कितने अच्छे और गहरे संबंध थे !


जो काम ईसाई मिशनरी पिछले 150 सालों में न कर सकी दयानंद के समर्थन से मात्र 7 वर्षों मे ईसाई मिशनरी के धर्म प्रचारको ने लाखों सनातनीयों का धर्म परिवर्तन कर उन्हें ईसाई बनाया बडे आश्चर्य कि बात है कि स्वंय को वैदिक कहने वाले दयानंद को ईसाई मिशनरीयों के साथ मिलकर धर्म प्रचार करने में सनातन धर्म के टुकडे करने में तो कोई परहेज नही था पर अपने हिन्दु भाई आँखों मे खटकते थें ऐसा शायद इसलिये क्योकी स्वामी दयानंद और ईसाई मिशनरी का उद्देश्य एक ही था किसी भी प्रकार सनातन संस्कृति को पुरी तरह से समाप्त करना था !


शायद यही कारण रहा कि दयानंद ने अपने तथाकथित ग्रंथ के प्रथम संस्करण में 1875 से लेकर 1883 तक केवल सनातन धर्म की ही आलोचना करी है सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम संस्करण में जो वैदिक-यंत्रालय प्रयाग में छापी गई थी उसमे दयानंद की मृत्यु (30 अक्टूबर 1883 ई०) तक केवल 11 समुल्लास ही छपे थे ! जिसमें केवल सनातन धर्म की ही आलोचना करी गई थी ईसाई या मुस्लिम मत के खिलाफ एक शब्द नहीं लिखा था शेष 3 समुल्लास उनके निधन के बाद 1884 में वैदिक-यंत्रालय प्रयाग द्वारा दुसरे संस्करण मे छापा गया !


दयानंद सरस्वती की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिये डीएवी कालेज की स्थापना लाला हंसराज ने सन 1886 में लाहौर में की थी ! जिसने दयानन्द एंग्लो-वैदिक महाविद्यालय के नाम से अंग्रेजों के सहयोग से गुरुकुलों को समाप्त करने और अंग्रेजी शिक्षा पध्यति को बढ़ने में ईसाईयों की मदद की ! क्योंकि अंग्रेजों के स्कूल में भारतीय अपने बच्चे नहीं पढ़ते थे तो अंग्रेजों ने लाला हंसराज की मदद से दयानन्द एंग्लो-वैदिक महाविद्यालय की स्थापना की और उसकी स्थापना के लिये लाला हंसराज को जमीन और पैसे से मदद की !


डीएवी के अंतर्गत आज 667 शिक्षण संस्थाएं हैं, जिनमें 461 हाईस्कूल हैं ! जिसकी वार्षिक बजट करीब 400 करोड़ से भी अधिक है ! इन स्कूलों का संचालन दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज ट्रस्ट और प्रबंधन सोसाइटी के द्वारा ही किया जाता है !


आर्य समाजी अपने को शिक्षा, समाज-सुधार एवं राष्ट्रीयता का आन्दोलनकर्ता बतलाते हैं जबकि भारत के 85% स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों को मुखबिरी करके इन लोगों ने या तो पकड़वा दिया या फिर मरवा दिया !


यह पोस्ट उन मूर्खों के मुहँ पर तमाचा है जो दयानंद को वैदिक धर्म का प्रचारक और हिन्दुओं का हितैषी बोलते हैं जबकि सत्य तो यह है कि दयानंद सरस्वती ईसाई मिशनरी के बहुत बड़े ऐजेंट थे ! इसीलिए आज भी आर्य समाजी सनातन देवी देवताओं के पूजा पाठ, कर्मकाण्ड और ज्योतिष आदि वैदिक ज्ञान का विरोध करते हैं !


 


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