... हिंदू क्यों गुलाम हुआ ?

शाहजहाँ ने बताया था... हिंदू क्यों गुलाम हुआ ?   


मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था। तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार-सेनापति -अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था ।


उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा-व्यथा थी । तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती... मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे । लेकिन समय चक्र पलटा... दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सिंहासन भी लूट लिया। इसी मयूर सिंहासन को फारसी भाषा में तख्त-ए-ताऊस कहा जाने लगा ।


दरबार का अपना सम्मोहन होता है और इस सम्मोहन को राजपूत वीर अमर सिंह राठौर ने अपनी पद चापों से भंग कर दिया । अमर सिंह राठौर.. शाहजहां के तख्त की तरफ आगे बढ़ रहे थे । तभी मुगलों के सेनापति सलावत खां ने उन्हें रोक दिया ।


सलावत खां- ठहर जाओ... अमर सिंह जी... आप 8 दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं ।


अमर सिंह- मैं राजा हूँ । मेरे पास रियासत है फौज है.. किसी का गुलाम नहीं ।


सलावत खां- आप राजा थे... अब हम आपके सेनापति हैं... आप मेरे मातहत हैं । आप पर जुर्माना लगाया जाता है... शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा ।


अमर सिंह- अगर मैं जुर्माना ना दूँ !


सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर... ये काफिर आपके सामने हुकूम उदूली कर रहा है।


अमर सिंह के कानों ने काफिर शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया... तलवार बिजली की तरह निकली और सलावत खां की गर्दन पर गिरी । मुगलों के सेनापति सलावत खां का सिर जमीन पर आ गिरा... अकड़ कर बैठा सलावत खां का धड़ धम्म से नीचे गिर गया । दरबार में हड़कंप मच गया... वज़ीर फ़ौरन हरकत में आया वो बादशाह का हाथ पकड़कर भागा और उन्हें सीधे तख्त-ए-ताऊस के पीछे मौजूद कोठरीनुमा कमरे में ले गया । उसी कमरे में दुबक कर वहां मौजूद खिड़की की दरार से वज़ीर और बादशाह दरबार का मंज़र देखने लगे ।


दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ सिपाहियों का पूरा दस्ता अमर सिंह पर टूट पड़ा था । देखते ही देखते... अमर सिंह ने शेर की तरह सारे भेड़ियों का सफ़ाया कर दिया ।


बादशाह- हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया... या खुदा !


वज़ीर- जी जहाँपनाह


बादशाह- अमर सिंह बहुत बहादुर है... उसे किसी तरह समझा बुझाकर ले आओ... कहना हमने माफ किया !


वज़ीर- जी जहाँपनाह ! हुजूर... लेकिन आँखों पर यक़ीन नहीं होता... समझ में नहीं आता... अगर हिंदू इतना बहादुर है तो फिर गुलाम कैसे हो गया ?


बादशाह- अच्छा... सवाल वाजिब है... जवाब कल पता चल जाएगा ।


अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।


शाहजहां- अमर सिंह का कुछ पता चला ।


वजीर- नहीं जहाँपनाह... अमर सिंह के पास जाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है ।


शाहजहां- क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?


दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की... बड़े बड़े रुस्तम-ए-जमां मौजूद थे । लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी।


आखिर में एक राजपूत वीर आगे बढ़ा.. नाम था... अर्जुन सिंह ।


अर्जुन सिंह- हुज़ूर आप हुक्म दें... मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ ।


बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा.. यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है... हिंदू बहादुर है लेकिन इसीलिए गुलाम हुआ.. देखो.. यही वजह है।


अर्जुन सिंह... अमर सिंह के रिश्तेदार थे । अर्जुन सिंह ने अमर सिंह को धोखा देकर उनकी हत्या कर दी । अमर सिंह नहीं रहे लेकिन उनका स्वाभिमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में प्रकाशित है । इतिहास में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे सबक़ लेना आज भी बाकी है ।


#हिंदू


- शाहजहाँ के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी की किताब बादशाहनामा से ली गईं ऐतिहासिक कथा ।


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