ईश्वर की सच्ची उपासना

सच्चे शिव अर्थात् निराकार ईश्वर की पूजा करना ही ईश्वर की सच्ची उपासना है -                                    


शिवलिंग को ईश्वर का लिंग वा प्रतीक मान कर पूजना मूर्खता है पागलपन है ।भग लिंग का प्रतीक शिवलिंग पूजा, प्रतिमा पूजा,विग्रह पूजा, गणेश पूजा आदि की पूजा करना ईश्वर की सच्ची उपासना नहीं है और न ही यह सब हमारी सनातन वैदिक संस्कृति के अंग हैं। ईश्वर निराकार है, सृष्टिरचना के लिए इक्षण शक्ति उसकी स्वाभाविक शक्ति है,  क्योंकि जो साकार होता तो व्यापक नहीं हो सकता। जब व्यापक न होता तो सर्वज्ञादि गुण भी ईश्वर में न घट सकते। क्योंकि परिमित वस्तु में गुण, कर्म, स्वभाव भी परिमित रहते हैं तथा शीतोष्ण, क्षुधा, तृषा और रोग, दोष, छेदन, भेदन आदि से रहित नहीं हो सकता। इस से यही निश्चित है कि ईश्वर निराकार है। जो साकार हो तो उसके नाक, कान, आंख आदि अवयवों का बनानेहारा दूसरा होना चाहिये। क्योंकि जो संयोग से उत्पन्न होता है उस को संयुक्त करनेवाला निराकार चेतन अवश्य होना चाहिये। जो कोई यहां ऐसा कहे कि ईश्वर ने स्वेच्छा से आप ही आप अपना शरीर बना लिया तो भी वही सिद्ध हुआ कि शरीर बनने के पूर्व निराकार था। इसलिए परमात्मा कभी शरीर धारण नहीं करता किन्तु निराकार होने से सब जगत् को सूक्ष्म कारणों से स्थूलाकार बना देता है।


ईश्वर कोई कल्पना नहीं परम सत्य है । ब्रह्मा विष्णु शिव गणेश महादेव निरंजन सब उसी एक सर्वव्यापक निराकार ईश्वर के नाम हैं । ईश्वर का मुख्य नाम ओ३म् है , सब ऋषि मुनियों ने ओम् की ही महिमा के गीत गाये हैं, उसी के जप और ध्यान का उपदेश किया है । ओ३म् क्रतो स्मर- यजुर्वेद 40.15 अर्थात हे कर्मशील मनुष्य ! तू ओम् का ही जप कर ।


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