अभिमान से कैसे बचे
ज्ञान प्राप्ति करने के बाद प्रायः एक दोष उत्पन्न होता ही है, वह है अभिमान। यह दोष प्रायः सभी को उत्पन्न होता है। इस दोष से अपनी जान बचानी पड़ती है। जिसका कि उपाय है ईश्वर समर्पण।
यदि कोई व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करके अथवा ऐसी ही और कोई सिद्धि प्राप्त करके ईश्वर समर्पण करता है, तभी वह अभिमान नामक दोष से बच पायेगा, अन्यथा नहीं।
कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि जब ज्ञान प्राप्ति से अभिमान आता ही है, तो ज्ञान प्राप्त करें ही क्यों? बिना ज्ञान के ही सीधा सरल रहना ठीक है.
परंतु हमारी दृष्टि में यह चिंतन उचित नहीं है। व्यवहारिक नहीं है। क्योंकि यदि किसी को अधिक भोजन खाने पर बदहजमी हो जाती है, तो क्या इसका उपाय यह किया जाए कि वह भोजन खाना ही छोड़ दे? अथवा संयम से खाए, यह करना उचित है?
तो जैसे बदहजमी से बचने के लिए भोजन छोड़ देना उचित नहीं है, बल्कि संयम से भोजन खाना उचित है। इसी प्रकार से अभिमान से बचने के लिए ज्ञान प्राप्ति करना ही नहीं, यह उपाय उचित नहीं है। बल्कि ईश्वर समर्पण करना उचित है।
पहले ज्ञान अवश्य प्राप्त करें, फिर ईश्वर समर्पण भी अवश्य करें, जिससे नम्रता आएगी।
ज्ञान प्राप्ति के बाद, यदि अभिमान उत्पन्न हो गया, और उसे दूर नहीं किया, तो वह ज्ञान विष के तुल्य हो जाएगा, और सबका विनाश करेगा। और ईश्वर समर्पण करने पर, यदि आपके जीवन में नम्रता आएगी, तो वह ज्ञान अमृत के समान आप सबका कल्याण करेगा।
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