आर्य कौन ? हिन्दू कौन

आर्य कौन ? हिन्दू कौन     


यूँ तो हमारे धार्मिक ग्रन्थ, वेद उपनिषद महाभारत रामायण आर्य की अनेको परिभाषा देते है।


योग्य, धार्मिक, गुणी, श्रेष्ठ, कर्मनिष्ठ, आस्तिक, उपासक आदि।


परन्तु सरल शब्दों में कहे तो जो वेद आज्ञाओं को सम्मान दे , उनका यथायोग्य पालन करे वही आर्य है।


सभी धार्मिक मनुष्य यह जानते है कि वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो सृस्टि की आरम्भ में मनुष्यों को चार ऋषियों के माध्यम से मिला।


इस ज्ञान को याद करके ज्यों का त्यों सुरक्षित रखा गया , लेश मात्र भी अंतर एक मात्रा का भी नही आया।


यह ज्ञान सीखने जब एक बालक गुरुकुल में प्रवेश लेता है तब गुरु उसका यज्योपवीत संस्कार करता है और उसे आर्य की उपाधि देता है।


अर्थात आज से यह बालक वेद विज्ञान सीखने की राह पर चल पड़ा , अपनी योग्यता के आधार पर ये जितना अधिक सीखेगा उतना सम्मान पायेगा।


चारों वेदों को जान लेगा तो ब्राह्मण कहलायेगा।


वेदों की शस्त्र विद्या सीखेगा तो क्षत्रिय कहलायेगा।


वेदों में वर्णीत् आर्थिक नीतियॉं सीखेगा तो वैश्य कहलायेगा।


इससे कम सीखकर अगर कृषि , श्रम व् सेवा कार्य करेगा तो शुद्र कहलायेगा।


परन्तु रहेगा आर्य ही, आर्य ही उसकी धार्मिक् पहचान है।


जिस दिन वेद विरुद्ध कार्य करेगा, वेदो का अपमान करेगा उस समय वह अनार्य , नास्तिक, अधार्मिक, राक्षस कहलायेगा और वैदिक वर्ण व्यवस्था से निष्कासित कर दिया जाएगा।


हे ! आर्यो की संतानों , आँखे खोलो तुम जिनकी पूजा करते हो वे सब वेद आज्ञा में चलने वाले आर्य थे।
श्री राम आर्य थे।
श्री कृष्ण आर्य थे।
दुश्मनों को कंपाने वाले (कपि) हनुमान आर्य थे।


आर्यत्व ही हमारी पहचान है, जिसे विधर्मी और अधर्मी हमसे छीनना चाहते है।


हिन्दू आधुनिक शब्द है, किसी प्राचीन ग्रन्थ में नही मिलता, किसी गुरुकुल में नहीं पढाया जाता, संस्कृत व्याकरण की किसी धातु से उत्पन्न नहीं है।


हिन्दू शब्द को आप १८ वीं शताब्दी से पूर्व के लिखी हुई किसी भी संस्कृत पुस्तक / ग्रन्थ में हिन्दू शब्द लिखा दिखा दीजिये।


हमारे किसी भी शास्त्र, ग्रन्थ में हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं मिलता वेद, उपनिषद, मनुस्मृति, ६-दर्शन, ब्राह्मण-ग्रन्थ, रामायण, गीता और रामचरित मानस आदि आदि किसी भी ग्रन्थ में हिन्दू नाम नहीं है। धर्म का नाम है तो केवल और केवल वैदिक धर्म, सनातन धर्म, आर्य धर्म। इनके प्रमाण ढेरों मिल जाते हैं।


हिन्दुवादी स्वयं जब यह कहते हैं कि सिन्धु शब्द का हिन्दू बन गया या सैन्धव का हिन्दव या हैन्दाव बन गया तो परोक्ष में वे स्वयं स्वीकार करते हैं की हमारा हिन्दू नाम अपभ्रंश है, अशुद्ध है, विकारी है। क्या कोई व्यक्ति अपने नाम की पहचान अशुद्ध, विकारी, अपभ्रंश नाम से करवाना चाहेगा ???
यदि ये अशुद्ध है और हमको जब पता चल ही गया की हिन्दू शब्द का मूल सिन्धु या सैन्धव है तो क्यों नहीं मूल को स्वीकार कर आज से अपने आपको सिन्धु या सैन्धव कहलवाते ??


कम से कम ये तो कहा जा सकेगा की ये शब्द हमारे अपने शुद्ध संस्कृत के हैं, शास्त्रीय है।


मनुस्मृति में हिन्दुस्थान शब्द का उल्लेख नहीं है मनुस्मृति में आर्यावर्त की सीमायें बताई गयी हैं।


शास्त्रों के विरोधी हिंदुवादियों को ध्यान देना चाहिए।


जैसे हर चमकती वस्तु सोना नहीं होती उसी तरह हर संस्कृत में लिखी पंक्ति/उक्ति प्रमाण नहीं होती।


RSS के विद्वान कहते है कि ब्रहस्पति आगम ने हिन्दू शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि जो हिमालय से इंदु सरोवर अर्थात हिन्द महासागर के बीच के स्थान पर रहे वह हिन्दू है।
इस परिभाषा के अनुसार एक मुसलमान ईसाई कसाई भी हिन्दू है जो भारत में रहता है।


यह तो मूर्खता है, वही अगर एक धार्मिक जो विदेश में रहता है वह हिन्दू नही कहलायेगा, यह तो और भी बड़ी मूर्खता हुई।


कृपा कर बृहस्पति आगम या ब्रहस्पति अग्यम ग्रन्थ के प्रकाशक का नाम पता बताइए यह जानकारी किसी के पास नही।
प्रायः हिन्दुवादी मेरुतंत्र का प्रमाण देते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं की ये तांत्रिक ग्रन्थ हैं और नवीन हैं। इन तांत्रिक ग्रंथों में मांसाहारी और शराब का भी समर्थन / वर्णन है तो क्या ये
हिन्दू इन गलत कार्यों को भी करेंगे ?


मेरुतंत्र को बने हुए मात्र ३००-४०० वर्ष ही हुए हैं और मुसलमानों के बाद का ग्रन्थ है क्योंकि इसके एक श्लोक में “पञ्चखाना सप्तमीरा” भी आया है जो मुस्लिम शब्द है।


इसी प्रकार कुछ अन्य ग्रन्थ शब्दकल्पद्रुम, पारिजात हरण, माधव दिग्विजय आदि सब नवीन ग्रन्थ हैं अतः मान्य नहीं, प्रमाण नहीं।


सबसे बड़ा प्रमाण
RSS की प्रार्थना में "नमो वत्सले आर्यभूमि" को बाद में नव संघियो ने हिन्दुभूमि में बदल दिया गया।
आर्य ही हमारी मुख्य धार्मिक पहचान है।
गर्व से कहो हम आर्य है।


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