आकृतियों के रूप में, मिलते हैं पाषाण।
🌹🌹🌹आकृति🌹🌹🌹
विधा--दोहा छंद
आकृतियों के रूप में, मिलते हैं पाषाण।
दिखते हैं भगवान सम, बसते हैं मन प्राण।।
कलाकार ने गढ़ दिया,अद्भुत ,अनुपम रूप।
माता दुर्गा लग रहीं, कोमल सुता स्वरूप।।
आकृतियों को देखकर, उठते मन में भाव।
जैसे देखो चित्र में, वैसा पड़े प्रभाव।।
कलाकार ने भाव भर,गढ़े चित्र अनमोल।
सजीव आकृति लग रही, अब-तब मुख दे खोल।।
आज घरों में सज गए, पनघट,नदियाँ प्यार।
आकृतियों से जुड़ गए, सिमट गया संसार।।