यदि चाहते हो हमारे घर आवें श्रीराम, कृष्ण, दयानंद, भगतसिंह। तो तीन संस्कार गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोनयन अवश्य कीन्ह।।

यदि चाहते हो हमारे घर आवें श्रीराम, कृष्ण, दयानंद, भगतसिंह।
तो तीन संस्कार गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोनयन अवश्य कीन्ह।।
आइये आज  हम सीमन्तोनयन संस्कार में दी जाने वाली उन आठ आहुति- मन्त्रों का काव्य भाव जानेंगे जिनके द्वारा गर्भ में पल रहे शिशु की मानसिक वृद्धि की बात है किस तरह माता पिता द्वारा  गर्भस्थ शिशु को युक्त आहार के साथ उत्तम धार्मिक विचार देने चाहिए।
स्वस्थ सुडौल मस्तिष्क की वृद्धि हेतु यह सीमन्तोनयन संस्कार किया जाता है। अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान गर्भ में ही हो गया था ऐसा हम इतिहास में पढ़ते चले आ रहे हैं माता एक साँचे की भांति होती है जैसा मेटेरियल-सामिग्री उस सांचे में डाली जाती है वैसी ही मूर्ति चित्र सांचे में ढल जाता है। माता का जैसा विचार संस्कार होता है वैसा ही गर्भस्थ शिशु पर अंकित होता जाता है जिसकी माता धार्मिक विदुषी उसके बच्चे भी धार्मिक विद्वान होते देखे जाते हैं माता कौशल्या, माता सीता,माता मदालसा, माता जीजाबाई इत्यादि हमारे समक्ष अनेक उदाहरण हैं।
इतिहास भरा पड़ा है। जैसी पुस्तक, जैसे चित्र, जैसे विचार माता के होते हैं वैसे ही बालक में बन जाते हैं और सिर्फ माता का ही नहीं, पिता का भी पूरा चित्र बालकों में देखा जाता है।
जैसे माता पिता उनके वैसे ही बच्चे बनते हैं, एक्सेप्शन (अतिवाद) को छोड़कर।
संस्कार दाल के उस हींग जीरे के छौंक की भांति काम करते हैं जिसके अर्थात् छौंक लगने पर वह अत्यंत स्वादिष्ट व खुशबूदार हो जाती है। वस्तुतः इन तीन संस्कारों की नींव पर ही टिकी है मनुष्य जीवन की पूर्ण इमारत।
जिनमें से सीमन्तोनयन की महती भूमिका है। क्योंकि मस्तिष्क हमारे शरीर का वह भाग है जहां से पूरा शरीर संचालित होता है।
सीमन्तो नयन संस्कार  के आठ मन्त्र काव्य भाव
1-हे बलशालिनी वधू तुम्हें,
प्रभु दे प्राची (अग्रिम) अक्षय शक्ति।
जिससे जो संतान जनो,
वह हो प्रवीण मन, बल बुद्धि।
देने का संकल्प भाव,
जनिता माता में बना रहे।
जिससे बालक धीर वीर,
दानी वृत्ति से सना रहे।।


2-वही ईश सब जग का धाता,
वही धनों का अक्षय कोष।
वही करे देखभाल सभी की,
वही लक्ष्य पाने जग ठोस।
मेरे लिये नहीं यह आहुति,
चरणों मे वंदन हे ईश।
तेरा तुझको करूं समर्पण,
हवि के योग्य आप जगदीश।।


3-सुंदर हो आचरण परस्पर,
पति संग पत्नी मृदु व्यवहार।
सुनें ध्यान से बात काम की,
करे सामना बन प्रिय नारि।
सामाजिक  कर्तव्य निभाये,
उत्तम संतति को जनकर।
विषम परिस्थिति में न डोले,
मुश्किल में भी खुश मन कर।।
4-हे सौभाग्यप्रदा हे सुमना,
रूप और सौंदर्य की देवी।
बलिहारी हूँ तेरे प्रेम का,
अर्पण कर दिया दिल तूने भी।
इसी तरह आदान प्रदान कर,
सहस्त्र गुणा हम हो जाएं।
आने वाली सन्तति में,
जिससे वे सब गुण भर जावें।।


अब पत्नी कहती है-
5-
जिस ने मुझमें पुत्र काम से,
किया गर्भ का है आधान।
नहीं रहे अकर्मण्य कभी वह,
जिससे पोषण गृह, संतान।
हाथ जोड़कर करूं प्रार्थना,
मेरी विनती नाथ यही।
भाग्यवान हम बने रहें,
धन, बल, यश की न रहे कमी।।


इस मन्त्र में पत्नी की उपमा पृथ्वी से
6-
जैसे पृथ्वी अपने गर्भ में,
समुचित करे वनस्पति धारण।
दशवें मास में पैदा होने,
स्त्री त्यों करे शिशु का पालन।
युक्ताहार विहार दिनचर्या,
करे बढाने तन मन को।
पति भी बने सहायक पूरा,
करने स्वस्थ स्त्री धन को।।


अब यह वचन शास्त्रकार कहता है- हे पुरुष,


7-सुंदर नख शिख इन्द्रिय वाली,
भार्या पर दे ध्यान तू पूरा।
जिससे दशवें मास में तुझको,
पुत्र मिले परिपक्व व भूरा।
विष्णु (व्यापकःईश्वर) सम हो सर्वश्रेष्ठ,
रूपवान गुणों में भारी हो।
पौरुषयुक्त अति बलशाली,
स्वस्थ, छवि प्रिय न्यारी हो।।


८-
हे प्रजापति हम सबके पालक,
तव भिन्न न दुनियाँ सारी है।
ओतप्रोत सारी जगती में,
रहकर सृष्टि सँवारी है।
सर्वोपरि सर्वेश्वर विष्णु,
तू सबका आश्रय आधार।
करो कामना पूर्ण हमारी,
जन्मे बालक पा तव प्यार।।
        इति
इनके आठ मन्त्र महर्षि दयानंद कृत- संस्कार विधि पुस्तक से पढ़ें।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या


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