उपनिषद्
उपनिषद्
1. उपनिषद् शब्द की व्युत्पत्ति उप+नि+षद् शब्दों से हुई है जिसका क्रमशः अर्थ है समीप+निष्ठापूर्वक श्रवण+परमात्मा की प्राप्ति। अतः उपनिषद् का शाब्दिक अर्थ है परमात्मा की प्राप्ति के लिए निष्ठापूर्वक श्रवण करना और ज्ञानार्जन करना।
2. महर्षि दयानन्द ने केवल 11 उपनिषदों को ही आर्ष उपनिषद् माना है
(1) ईशावास्योपनिषद्(2) केनोपनिषद् (3) कठोपनिषद् (4) ऐतरेयोपनिषद्
(5) तैत्तिरीयोपनिष्द (6) मुण्डकोपनिषद् (7) मांडुक्योपनिषद् (8) प्रश्नोपनिषद्
(9) छांदोग्योपनिषद्(10) बृहदरारण्यकोपनिषद् (11) श्वेताश्वतरोपनिषद्
3. आर्ष उपनिषदों में ऋग्वेद की ऐतरेय और तैत्तिरीय उपनिषदें, यजुर्वेद की ईश, कठ, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतर उपनिषदें,सामवेद की केन और छांदोग्य उपनिषदें अथर्ववेद की मुण्डक, माडूक्य और प्रश्न उपनिषदें आती हैं।
4. आर्ष उपनिषदों में सबसे छोटी उपनिषद् माण्डुक्योपनिषद् है।
5. आर्ष उपनिषदों में सबसे बड़ी उपनिषद् बृहदारण्यकोपनिषद् है। इसमें 6 अध्याय और 435 श्लोक हैं।
6. उपनिषदों की संख्या के विषय में विभिन्न विद्वानों के विभिन्न मत हैं। अत: इनकी संख्या के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। परन्तु मुक्तिकोपनिषद् जिस में राम एवं हनुमान के मध्य हुये वार्तालाप में 108 उपनिषदों की सूची दी गई है।