स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती 

स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती 



       स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्ती जी आर्य समाज के तेजस्वी संन्यसी थे । आप उच्चकोटि के वक्ता थे तथा उतम विद्वान व विचारक थे । सन १८९० मे आप का जन्म एक क्रष्क परिवार में हुआ । आप आरम्भ से ही मेधावी होने के साथ ही साथ विरक्त व्रति के थे । आप उच्च शिक्शा न पा सके गांव में ही पाट्शाला की साधारण सी शिक्शा प्राप्त की ।


      आरम्भ से ही विरक्ति की धुन के कारण आप शीघ्र ही घर छोड कर चल दिए तथा काशी जा पहुंचे । यहां पर आप ने स्वामी क्रष्णानन्द जी से संन्यास की दीक्शा  ली  । संन्यासी होने पर भी आप कुछ समय पौराणिक विचारों में रहते हुए इस का ही अनुगमन करते रहे किन्तु कुछ समय पश्चात ही आपका झुकाव आर्य समाज की ओर हुआ । आर्य समाज में प्रवेश के साथ ही आप को विद्या उपार्जन की धुन सवार हुई तथा आप गुरुकुल ज्वाला पुर जा पहुंचे तथा आचार्य स्वामी शुद्ध बोध तीर्थ जी से संस्क्रत व्याकरण पटा ।


       यहां से आप खुर्जा आए तथा यहां के निवास काल में दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया । इसके पस्चात आप काशी चले गए । काशी में रहते हुए आप ने की शास्त्रों का गहन व विस्त्रत अध्ययन किया । इस प्रकार आपका अधययन का कार्य २१ वर्ष का रहा , जो सन १९३५ इस्वी में पूर्ण किया ।


       स्वामी जी ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी खूब भाग लिया । सन १९३९ मे जब हैदराबाद सत्याग्रह का शंखनाद हुआ तो आप इस में भी कूद पडे । इस मध्य आप को ओरंगाबाद की जेल को अपना निवास बनाना पडा । १७ अप्रैल १९३९ को आपने जिला करनाल , हरियाणा के गांव घरौण्डा में गुरुकुल की स्थापना की । आप ने आर्य समाज के अन्य आन्दोलनों में भी बट चट कर भाग लिया । जब पंजाब की कांग्रेस की सर्कार के मुखिया सरदार प्रताप सिंह कैरो ने पंजाब से हिन्दी को समाप्त करने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया तो आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब को हिन्दी रक्शा के लिए एक बहुत विशाल आन्दोलन करना पडा । आप ने इस आन्दोलन में भी खूब भाग लिया तथा पंजाबी सूबा विरूध आन्दोलन में भी आपने बलिदानी कार्य किया ।


      आप की देश व धर्म की सेवाओं को देखते हुए लोगों ने आप को सांसद चुन लिया तथा आप लोक सभा के सदस्य भी बने । आप ने अनेक पुस्तकें भी लिखीं , यथा महर्षि दयनन्द ओर राजनीति , महर्षि दयानन्द का योग , संध्या भाष्यम , नमस्ते प्रदीप , महर्षि दयानन्द ओर आर्य समाजी पण्डित , विवाह पद्ध्ति , भ्रमोच्छेदन आदि । देश के इस नि:स्वार्थी तथा निर्भीक वक्ता का ८ मई १९९० इस्वी को निधन हो गया ।


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